Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 146
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . लोही सींचुं तैल ज्यु, कब मुख देखुं पीव ?" अपने आतम अनुभव आनंदघनरूपी पीव-प्रियतम् का दर्शन करने मुनि भद्रमुनि भी गा रहे थे :"अनुभव क्या जानै व्याकरणी ? कस्तूरी निज नाभि में पर, लाभ न पावै हिरनी।" (सहजानंदसुघा-१४१) तो यह अनुभव, निजानुभव, आत्मानुभव स्पष्ट पाने के लिये सतत पुरुषार्थी ऐसे भद्रमुनि अपने गुरूकुल वास में भी कठोर आत्मसाधना में तल्लीन बने रहे । परिणामतः अपने गुरूकुलवास के भिन्न-भिन्न विहारों में वे नितनए दिव्यानुभव करते रहे अपने जामनगर, सुरत, महेसाणा, बम्बई आदि अनेक-चातुर्मासों के दौरान । युवावय का उनका सर्वसंगपरित्याग उन्हें उत्तरोत्तर परमपद प्राप्ति की ओर ही ले जानेवाला बना रहा। और इस परमपद-प्राप्ति के पंथ का उनका अगला पड़ाव था एकाकी, असंग, गुफावास । अपने गुरूकुलवास के समापन पर वे स्वयं ही लिखते हैं - "दीक्षापर्याय के बारहवें वर्ष में धर्मऋण चुकाकर उऋण होकर आकाशवाणी के आदेश को आचार में कार्यान्वित करने वह ( = स्वयं) गुफावासी बना ।" (चतुर्थ प्रकरण की आत्मकथा) उनके इस और अन्य भी दिव्यानुभवों-आत्मानुभवों के प्रदायक एकाकी असंग गुफावास में कुछ दृष्टिपात करने से पूर्व, उनके उपर्युक्त गुरूकुलवास के कुछ प्रमुख चातुर्मासों का समापन-दर्शन करके हम आगे बढ़ेंगे। अनुभव-प्रदाता चंद चातुर्मास : _ वि.सं. १९९१ (1991) सन् 1935 में कच्छ-लायजा में उनकी भागवती मुनिदीक्षा के पश्चात् गुरूकुल वास में बाह्यांतर आत्मसाधना एवं अध्ययन करते हुए उनके ये स्मरणीय प्रमुख चातुर्मास संक्षेप में निम्नानुसार थे : .विक्रम संवत् १९९६-सन् 1940 : ठाणा : जहाँ अपनी अप्रमत्त आराधना के द्वारा आचार्य श्री जिनऋद्धिसूरिजी के वे विशेष कृपापात्र बने । • संवत् १९९७ - सन् 1941 : मुम्बई लालबाग : जहाँ नूतन आचार्य श्री जिनरत्नसूरिजी की श्रा में. सभी साथी मनिवंद को तब हास्यास्पद प्रतीत हई ऐसी, एक आगंतक मस्लीम ज्योतिषी की भविष्यवाणी श्री भद्रमनि के विषय में सनी गई। उसका सार था उनके एकासन-भोजन, आत्मज्ञानप्राकट्य एवं राजयोग-ग्रहसंयोग के कारण भावी में वाहन में बैठने का योग । बाद में यह सब बना भी। • संवत् १९९८ - सन् 1942 : सूरत-शीतलवाड़ी : वेदनीय कर्मोदय से तेज ज्वर से काष्ठवत् अकड़ गए शरीर के कारण शीतलवाड़ी का वातावरण भी तब, अ-शीतल बन गया । डॉक्टरों ने आशा छोड़ दी । उपाध्यायश्री अंतिम आराधना के सूत्र सुनाने लगे । श्री भद्रमुनिने तब स्वयं को (126)

Loading...

Page Navigation
1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168