Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 128
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • (19) अनंत, 12 केम्ब्रिज रोड़, बेंगलोर-8 दि. 06-08-1970 परम पूज्य गुरुदेव, सविनय वन्दना । आप एवं पू. माताजी सुखशाता में होंगे । प्रतिदिन आपका स्मरण होता है। आपके द्वारा सौंपे गये कार्य का स्मरण होता है-आत्मसिद्धि के अनवाद के कार्य का और विकलता का अनुभव होता है कि कैसी परिस्थिति में फंस गया हूँ कि मेरे ही दिये हुए वचन का पालन नहीं कर पा रहा हूँ । काम का अत्यधिक बोझ ही इसके पीछे कारण है । फिर भी आपकी कृपा से आज गुरुवार के शुभ दिन किसी भी प्रकार रात में जाग कर भी उसका प्रारम्भ तो कर ही देना चाहता हूँ । इस अक्षम्य विलम्ब के लिए पुनः पुनः आपकी क्षमा माँगता हूँ। इस परिस्थितिवश कुछ संकोच के साथ परन्तु आपके प्रति सहज उन्मुक्त हृदय रहने से यह लिखने की इच्छा हो रही है और वह यह कि इन दिनों काम का बोझ मुझ पर कुछ अधिक रहता है उसमें और कुछ नहीं है, केवल यहाँ परिस्थिति कुछ त्रिविध तापमय बन गई है और उससे चन्दुभाई हाल में अत्यन्त तकलीफ़ में हैं । प्रभु पर विश्वास रख कर वे समतापूर्वक मार्ग निकाल रहे हैं किन्तु आखिर मनुष्य की सीमित शक्तियों का बल कितना ? इस स्थिति में भी वे तो अपनी मौन रहने की और न माँगने की प्रकृति के कारण कुछ लिखते नहीं हैं लेकिन मैं उनके लिए आपके पास माँग रहा हूँ विशेष आशीर्वाद कि उन्हें अपनी समस्याओं का निराकरण करने हेतु कुछ मार्ग मिले और वर्तमान संयोगों में से वे बाहर निकल सकें । विवश हो कर आपके पास यह प्रार्थना कर रहा हूँ। आशा है, आपके अन्तर के आशीर्वाद (भले मनोमन ही) चन्दुभाई को प्राप्त होंगे । ___ आपने आश्रम के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की खोज करने के लिए कहा था जो व्यवस्थापक के रूप में कार्य कर सके । मेरे ध्यान में एक ऐसे भाई हैं जिन्होंने मेरे पास ही गुजरात विद्यापीठ में अभ्यास किया था । स्नातक-ग्रज्युएट हो कर इन दिनों अध्यापक के रूप में कार्य कर रहे हैं । मन से अत्यंत उत्साही हैं, कार्यक्षम हैं और कृपाळुदेव के प्रति भक्ति एवं श्रद्धा है । अविवाहित हैं । उनका नाम देवशी भाई हैं । पटेल हैं, परन्तु हृदय से भावनाशील एवं साधना के प्रति झुकाव है । उतने ही कार्यदक्ष भी हैं । गुजराती भाषा के साथ साथ हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा भी जानते हैं । खादी पहनते हैं । गाँधीजी की राष्ट्रीय विचारधारा में पले हैं । उनका हाल ही में लिखा पत्र भेज रहा हूँ। अगर आपको उचित लगे और आपका हृदय अगर साक्षी प्रदान करे, तो आप मुझे लिखें, मैं उन्हें पत्र लिखूगा । आपकी आज्ञा मिलने से पहले उनको कुछ पूछना उचित नहीं लगता है अतः उन्हें कुछ नहीं लिखना चाहता । (108)

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