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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
विषय में प्रत्यक्ष बात भी करनी है । शनिवार को दिनांक 15 अगस्त है, 16 को रविवार है। 17 को पूर्णिमा है, अतः कोई आकस्मिक व्यवधान-रुकावट-नहीं आया तो आपके अनुग्रह से शनिवार दिनांक 15वी अगस्त के रोज यहां से एक मित्र की मोटर के द्वारा प्रस्थान करके शनिवार शाम के भोजन समय पूर्व वहाँ पहुंचेंगे वैसी सूचना संबंधित जनों को देने की विनति है। आपके स्वास्थ्य समाचार ज्ञात हुए ।
विनीत प्रताप के भाववंदन
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दिनांक : 24-09-1970 (महाव्याधि के बीच भी प्रसन्न अलखमस्ती... !
अंतिम दिनों की स्थितिः प.पू. माताजी का महत् पत्र) सद्गुणानुरागी चन्दुभाई तथा प्रतापभाई सपरिवार, आप सब आनन्द में होंगे ।
आपका पत्र मिला । पढ़ने पर हकीकत ज्ञात हुई । प्रतापभाई, आपके जाने के बाद प.पू. श्री प्रभुजी का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब हो गया है । दि. 25-09-1970 से उलटियाँ हो रहीं हैं । अशक्ति बहुत है । उठने-बैठने के लिए भी सहारे की आवश्यकता पड़ती है । पूर्ण रूप से आराम लेने का तय किया है । भाई ! उनका मन तो नहीं मानता है, लेकिन हम सभी आश्रमवासियोंने मिलकर प्रवचन बन्द करवाया है, क्योंकि शरीर अत्यन्त क्षीण हो गया है । देखनेवाला घबरा जाये लेकिन इस महापुरुष को किसी प्रकार का असर नहीं होता है । अपनी अलखमस्ती में रहते हैं । प्रसन्न मुख से समभावपूर्वक व्याधिकों को भोग लेते हैं । यही ज्ञानी पुरुष की पहचान है । इस महापुरुष की इस जगत को बहुत आवश्यकता है । अनेक जीव उनके चरणों में, उनकी शरण में भवपार उतर सकते हैं, इसलिए हम सब को मिलकर उनके लिए प्रभुप्रार्थना करनी है कि ये व्याधिकर्म शीघ्र दूर हो जायें, उनके शरीर को खूब शाता हो और ये महान पुरुष जुग-जुगों तक जीवित रहें । मैं तो भाई ! महापुरुषों के पास नित्य यह प्रार्थना करती हूँ।
आप सब भी मिलकर यह प्रार्थना प्रभु से करें । मेरा हृदय तो रातदिन रोता ही रहता है - अरे ! कैसी है कर्मों की गति कि ज्ञानी हो या अज्ञानी, कर्म तो अपना खेल दिखाते ही हैं । अन्तर केवल इतना ही है कि ज्ञानियों के पासे धैर्य होता है और अज्ञानी जीवों के पास 'हाय' होती है । इसी कारण से पूर्णिमा की रात को मैंने आपको मीठी डांट दी थी, क्योंकि 'रतन का जतन' होना चाहिए । और वह केवल एक मेरे लिए नहीं, जगत के सर्व जीवों के लिए इस पुरुष की रक्षा करना आवश्यक है । अगर उनके शरीर को शाता है, शान्ति
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