Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 122
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • सके) ऐसी शक्ति प्राप्त हो ऐसे आपसे और पू. माताजी से हार्दिक आशिष प्राप्त हो यही कामना है । गुरुजनों के आशिष ही हमारा सम्बल एवं बल है । इसके सिवा मेरे पास तो कोई बल है नहीं । आशा है, मेरे संकल्प को चरितार्थ करने के लिए आपके आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होंगे । बेंगलोर स्थिर होने पर आपके सान्निध्य की सुविधा भी होगी यह भी बड़ा आकर्षण है, अतः आप मेरी ध्यान-भक्ति के द्वारा ज्ञान-दर्शन- चारित्र की साधना में एवं श्रीमद् राजचन्द्र तथा आनन्दघनजी विषयक मेरे उपरोक्त संशोधन आदि सब कार्यों में सहायरूप बनेंगे इसका मुझे विश्वास है । वैसे बेंगलोर में व्यवसाय की जिम्मेदारी पूर्ण जागृति के साथ फिर भी कृपाळुदेव की भाँति निर्मल निर्लेपभाव से निभानी है और उसके लिए भी आपके आशीर्वाद की अपेक्षा है । (4) पू. चन्दुभाई शायद पूर्णिमा के अवसर पर वहाँ आते रहते होंगे और आपका मार्गदर्शन उनको मिलता रहता होगा । (5) इस पूर्णिमा पर शारदाग्राम हो कर चोरवाड़ के सागरतट पर आयोजित विमलाताई के ध्यान शिबिर में जा रहा हूँ । प्रथम मेरी पू. मातुश्री के पास शारदाग्राम जाऊँगा । पूर्णिमा की रात को संकल्प से तथा भावदेह से मेरे संगीत एवं भक्ति के साथ दूर रह कर भी वहाँ की भक्ति में उपस्थित रहने का प्रयत्न करूँगा । मेरी भक्ति के आंदोलन अगर सच्चे एवं समर्थ हों तो आपके एवं माताजी के भक्ति तथा आशीर्वाद के आन्दोलन भी उनमें सम्मिलित हो जायें ऐसी प्रार्थना । (6) इस पत्र के साथ एक अन्य छोटा-सा पत्र है एक परम विदुषी, जिज्ञासु एवं साधनारत साध्वी श्री निर्मला श्रीजी का । एम.ए. और साहित्यरत्न तक का उनका अभ्यास है और 'भारतीय दर्शन में अभाव भीमांसा' इस विषय पर पी.एच.डी के लिए निबंध भी उन्होंने लिखा है । जप और ध्यान की साधना में वे रत रहती हैं और सामाजिक कार्य की दृष्टि से युवतियों-कन्याओं के लिए वे ग्रीष्मकालिन शिबिर - संस्कार अध्ययन सत्र का आयोजन प्रति वर्ष करती हैं । इस वर्ष भी अहमदाबाद में उनका शिबिर होगा । सर्व प्रकार से उनकी यह प्रवृत्ति अनुमोदनीय है, सहायता करने योग्य है । आपकी तथा पू. माताजी की साधना के विषय में बात करने पर वे अत्यन्त आनन्दित हो गई थीं । ध्यान तथा षड्चक्रभेदन के विषय में उनका प्रश्न है उसका उत्तर देने की कृपा करें, आप चाहें तो उनके द्वारा दिये गये पते पर सीधा लिखें, या मेरे द्वारा भिजवायें । पुनः आपके आशीर्वाद की अपेक्षा के साथ इस प्रातः काल के समय अनेकानेक वन्दन के साथ रुकने की अनुमति लेता हूँ । प्रताप के भाववन्दन (102)

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