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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
यह साधनायात्रा..... उसके परम-निमित्त सद्गुरूदेव श्री सहजानंदघनजी के आशीर्वचनों में
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी
दिनांक : 19-11-1969
मुमुक्षुबंधु श्री प्रतापभाई, ___ बेंगलोर से आपका लेख श्री चंदुभाई द्वारा डाक से प्राप्त हुआ । यहाँ नये जिज्ञासुओं का आवागमन और उनके साथ धर्मचर्चा में समय व्यतीत होता है अतः लेख ऊपर ऊपर से देख लिया है और उसमें कुछ संशोधन किया है। बाकी इस देहधारी को उपमा देने के विषय में आपने कुछ ज्यादा अतिशयोक्ति की है । कतिपय प्रसंगवर्णनों में जो घटनाएँ अन्य व्यक्तियों के मुख से सुन कर आपने प्रस्तुत की हैं, वे यदि यहाँ पर इस देहधारी को पूछ कर उसके मुख से सुनी होती तो वे सब प्रसंग भिन्न रूप से ही लिखे गये होते । आपके वैयक्तिक अनुभव पढ़ कर प्रसन्नता हुई । इस सम्पूर्ण लेख के सम्बन्ध में आप स्वतंत्र हैं और यह देहधारी किसी की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने की वृत्ति से प्रायः असंग रहने का आदी है । अतः इस लेख पर स्वामित्व क्यों और कैसे रख सकता है ?
आपकी काव्यमय शैली देख कर कृपाळु देव के वचनामृत का भाषान्तर करने के लिए उसका लाभ उठाने का लोभ किसी प्रकार से इस आत्मा में जाग्रत हुआ है सही, लेकिन उसकी पूर्ति के सम्बन्ध में अवसर आने पर सोचेंगे ।
बाकी उक्त लेख की विशेष समीक्षा की नहीं है। आपको स्वहित के साथ साथ परहित में यह जिस प्रकार सहायक सिद्ध हो उस प्रकार से आप उपयोग करें यही आशीर्वाद है ।
ववाणिया तीर्थ में पू.श्री जवलबा तथा उनकी निश्रा में एकत्रित मुमुक्षु सभी भाई बहनों को मेरा हार्दिक जय सद्गुरुवन्दन । यह लेख प्राप्त होने पर पहुँच पत्र अवश्य भेजें ।
यहाँ से श्री माताजी ने आपको अनेकशः आशीर्वाद प्रेषित किये हैं। सर्व मुमुक्षु भाई बहनों ने हार्दिक जय सद्गुरु वंदन कहे हैं उसका स्वीकार करें । खेंगारबापा ने आपको विशेष रूप से याद किया है।
धर्मस्नेह में वृद्धि हो । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
सहजानंदघन के अनेकानेक आशीर्वाद ( हम्पी यात्रा के प्रथम दर्शन के पश्चात् बेंगलोर होकर अहमदाबाद लौटने पर लिखा गया पत्र)
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