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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
की मस्ती में डोल रहे खेंगारबापा को देखना आल्हाद-प्रदायक है । उनके दर्शन से मैं बड़ा प्रमुदित हो गया।
हां, रात्रि के अंधकार में अगर वे मिल जायें, तो उनसे अपरिचित लोग उनसे डरकर अवश्य भाग जायेंगे।
__ आत्माराम : एक अजीब साधक- ये हैं यहां के दूसरे साधक, शरीर हृष्ट-पुष्ट, रंग श्वेत श्याम । नहीं, यह कोई 'मानव' नहीं, श्वान' है । नमकहलाल, वफादार, फिर भी जिसे मानव प्रायः दुत्कार देता है, ऐसा एक 'कुत्ता' है वह । आप पूछेगे, भला कुत्ता भी साधक हो सकता है ? जवाब है हां, हो सकता है । श्वेत-श्याम, उदास आखोंवाले और जगत से बेपरवाह लगते इस कुत्ते की चेष्टाओं को देख कर माननी ही पड़ती है उसके पूर्व-संस्कार की बात, पूर्वजन्म में न मानने वाले लोग शायद स्वीकार न करें । परन्तु जागृत आत्माओं के लिए देह का भेद महत्वहीन होता है- आत्मा की सत्ता में माननेवाले बाह्य आकारों को कब देखते हैं ? श्वाने च, श्वपाके च' जैसे सूत्र देने वाले 'गीता' जैसे धर्मग्रंथ इसी बात की ओर संकेत करते हैं- 'आत्मदर्शी सर्वभूतों को आत्मवत् देखते हैं।" परंतु 'आत्मा' के अस्तित्व में शंका करनेवाले लोग, श्रीमद् राजचंद्रजी के शब्दों में
"आत्मानी शंका करे, आत्मा पोते आप, शंकानो करनार ते, अचरज एह अमाप ।"
पूर्व संस्कार में विश्वास न रखें, तो आश्चर्य नहीं, आत्माराम' का पूर्व इतिहास एवं वर्तमान स्वभाव ऐसे लोगों को भी दुविधा मे डाल देनेवाला है।
'रत्नकूट' के सामने, नदी के पार एक गांव में उसका जन्म हुआ था । जन्म के समय किसी धर्माचार्य ने कहा था कि यह योगभ्रष्ट हुआ पूर्व योगी है, एवं पिछले जन्म में रत्नकूट की एक गुफा में साधना कर रहा था।
इस बात की जांच करने किसी ने उसे कुछ वर्ष पूर्व इस आश्रम के गुफामंदिर के पास लाकर छोड़ दिया था । भद्रमुनि के साधना-स्थान में ही उसने पिछले जन्म में साधना की थी, इसका स्मरण हो आते ही रोने के बजाय वह खुशी से झूम उठा था । लाख कोशिशों के बावजूद वह वहाँ से हटा नहीं । आश्रम की माताजी करुणावश उसे दूध पिलाने लगी, छोटे शिशु की तरह जब उसे सुलाकर, चम्मच से दूध दिया जाता, तभी वह पीता ।
फिर तो माताजी ने उसे अपने पास रख लिया । बड़ा होने के बाद भी वह माताजी के हाथ का खाना खाता और वह भी दिगंबर क्षुल्लक भद्रमुनिजी की तरह एक ही वक़्त । किसी 'भ्रष्ट' योगी के ही ये लक्षण थे । आहार लेने के पश्चात् वह गुफामंदिर में बैठा रहता ।
'आत्माराम', यह नाम उसे भद्रमुनिजी ने दिया है । उस नाम से पुकारने पर वह दौड़ा चला आता है, परंतु सबके बीच होते हुए भी वह असंग, एकाकी रहता है। उसकी अपलक, उदास आंखें, गुफा के बाहर, सामने पहाड़ों की ओर कहीं दूर लगी रहती हैं । उसे देखते ही विचार आता है कि
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