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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
२. जैनतीर्थ चक्रकूट : उक्त नदी का प्रवाह पंपापति शिवालय से आधा मील आगे बढ़ने के पश्चात् उत्तराभिमुख मुड़ता है। वहाँ उस जलप्रवाह में चक्र-भँवर-पड़ता है। उससे सटकर पूर्व दिशा में जो शिखर है उसे चक्रकूट कहते हैं । उसके नदी की ओर के विभाग में कुछ जिनालयों के ध्वंसावशेषों-खंडहरों की बिखरी हुई विस्तृत सामग्री दिखाई देती है। नदी के उसके बाद के पूर्वोत्तरीय मोड़ के आगे उस चक्रकूट पर विशाल मंडपों का समूह है वह जिनालयों का ही खंडहर है । नीचे कुछ अ-जैन अवशेष भी बाद में निर्मित किए हुए विद्यमान हैं।
इस शिखर के वायव्य कोने में खाई के ऊपर के भाग के चालु रास्ते को सटकर जैन मंदिरों का समूह है। इन सारे विद्यमान जिनालयों के सूचनादर्शक जैन बोर्ड को अ-जैन के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है । शिलालेख मिटा देकर नष्ट किए गए हैं। ___ इस चक्रकूट का नदी की ओर का विभाग अति विकट है । इसलिए ही यहाँ के तीनों जैन तीर्थों का उल्लेख जिसमें है वह श्वेताम्बर-दिगम्बर उभय संप्रदाय को मान्य अति प्राचीन तीर्थवन्दना स्तोत्र 'सद्भक्त्या' में कहा है कि :
'कर्णाटे हेमकूटे विकटतरकटे, चक्रकूटे च भोटे । श्रीमत् तीर्थंकराणाम् प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वन्दे ॥'
शब्दार्थ : कर्णाटक देश में हेमकूट, विकटतर कटिभाग युक्त चक्रकूट तथा भोट ये तीन जैनतीर्थक्षेत्र हैं । वहाँ रहे हुए श्रीमान् तीर्थंकर देवों के चैत्यों की मैं प्रतिदिन वन्दना करता हूँ।
चक्रकूट के नीचे उत्तराभिमुख बहते जलप्रवाह को अ-जैन लोग चक्रतीर्थ कहते हैं और उसमें स्नान करके अपने भवोभव के पाप ताप शमित करने का संतोष मनाते हैं।
उक्त चक्रतीर्थ एवं वहाँसे जलप्रवाह में आधा मील दूर आये हुए भक्त पुरंदरदास मंडप के बीच नदी पार जाने के लिए प्राचीन पुल के अवशेष के रूप में दिखाई दे रही पथ्थर के स्तम्भों की हारमाला जहाँ जाती है वह भी विशाल जिनालय है जो खाली पड़ा है । वह और उसके निकटवर्ती विशाल गुफाएँ, मंडप-समूहों और ३० एकड़ मंदिर के हक्क की भूमि को एक शैव संन्यासी ने अपने अधीन कर ली और वहाँ मठ की स्थापना इस आश्रम की स्थापना होने के बाद कर ली है। ३. जैनतीर्थ भोट : उपर्युक्त मठ से प्रायः एक मील दूर उत्तर में आई हुई किला-परकोटायुक्त शिखरमाला की दक्षिण खाई में एक चारों ओर से सीढ़ियोंयुक्त निर्मित विशालकाय जलकुंड और पश्चिममें उसके निकट में ही आया हुआ दूसरा छोटा जलकुंड है जिसे शैवों ने क्रमशः पंपा सरोवर और मानसरोवर के नाम से प्रचलित किया है। उन जलकुंडों से सटकर दक्षिण तट पर ऊपर के विभाग में विशालकाय जिनालय के मंडपों का समूह है उनमें जो जिनबिम्ब थे उन्हें अदृश्य किया गया है। केवल एकमात्र विशालकाय अधिष्ठायिका देवी की मूर्ति शेष बची है, जिसके ऊपर "जैन पद्मावती" नामक बोर्ड पैंतीस वर्ष पूर्व था ऐसे समाचार मिले हैं। उसे हटाकर उसे लक्ष्मीजी के नाम से प्रचलित कर एक अजैन बैरागी साधुने वहाँ मठ की स्थापना पैंतीस वर्ष से की है। मंदिर के पीछे की पर्वतश्रेणी में कुछ गुफाएँ हैं उनमें से एक का नाम शबरी गुफा प्रचलित करके
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