Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 48
________________ विरोधी परास्त हुए उससे घबराकर उस बेचारे सोनारे का हृदय अचानक बंद पड़ गया ।..... विरोध मंडल बिखर गया !! उस सोनारे के बड़े भाई जयवंतराज परमकृपाळुदेव के अनुरागी बने और प्राय: प्रति रविवार तथा पूर्णिमा को और पर्युषण आदि पर्वो में सपरिवार सत्संग - भक्ति का लाभ लेते रहते हैं । • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • इस एक परीक्षा से पार उतर रहे थे उसी दौरान अन्य कुछ परीक्षक भी कमर कसने लगे। उनमें से मुख्य परीक्षक निकले हुबली निवासी... कि जो अपने आप को कृपाळुदेव का मुख्य वारिसदार और आत्मज्ञानी मानते हैं । उन्होंने इस देहधारी को अपना आंज्ञाकित बनवाने और इस आश्रम का सर्वेसर्वा बनने हेतु प्रयत्न प्रारम्भ किये । प्रथम कपटभाव से बाह्यभक्ति दिखलाकर अपना प्रभाव स्थापित करने का अभिनय किया और धीरे धीरे अपना आधिपत्य जमाने की चेष्टा की। अपनी मनमानी नहीं होने से आखिर परमकृपाळु के जयन्ती अवसर पर, नये नये जुड़े हुए २५०-३०० मुमुक्षुओं की उपस्थिति में अपने १५-२० अनुयायीओं को कुम्भोज तीर्थ ले जाने का बहाना बतलाकर यहाँ ले आकर उधम मचाया । ट्रस्टियों ने प्रस्ताव पारित कर उसका बहिष्कार किया । तेरापंथी और बाईस समुदाय के अग्रणी श्रावकों की भी यहाँ उपस्थिति थी । उन्होंने भी उसे बहुत समझाया फिर भी वह टस से मस नहीं हुआ । चिपक कर बैठा रहा । उग्र बने हुए कुछ सभ्यों ने उसकी पिटाई करने की तैयारी की, जिन्हें इस देहधारी ने समझाकर, रोककर उस निंदकमित्र को रक्षण प्रदान किया, अन्यथा यहाँ महाभारत का कुरुक्षेत्र बन जाता था ! विरोधियों पर सत्य की विजय उसके साथ आए हुए बेचारे शरमिंदा हो गए और ( उन्होंने ) ज़ाहिर किया कि हमें वह कपटधोखा कर यहाँ ले आये । आखिर ऊठकर वे सब चलते बने जिससे उसने भी रास्ता नापा । इस प्रकार पूर्वग्रह बांध कर इस आश्रम की नींव उखाड़ डालने की उसने प्रतिज्ञा की ।* प्रतिज्ञापालन हेतु हज़ारों रुपये खर्चकर अनेक पत्रिकाएँ क्रमबद्ध छपवाकर उसने प्रचारित कीं । अनेक ग्राम-नगरों में अपने मित्रों को प्रचारार्थ भेजा । प्रचारित पत्रिकाओं में उसने अपना छलकनेवाला आत्मज्ञान ऊँडेला । इस देहधारी को अनेक कलंक देकर उसे नीचा दिखाने में कोई कसर न छोड़ी * । परिणाम स्वरूप गच्छवासियों को परमकृपाळुदेव की निंदा करने का मौका मिला। उन्होंने गाँव गाँव घूमकर, यहाँ आनेवाले जिज्ञासुओं को रोकने में अपनी शक्ति खर्च कर दी । बहुतों से हम्पी में नहीं जाने की प्रतिज्ञा लिवायी । परमकृपाळु प्रति प्रार्थना : “आवो आवो गुरुराज, मारी झुपडीए; राखवा पोतानी लाज मारी झुपडीए "जंबु भरते आ काळे प्रवर्ते धर्मना ढोंग समाज.... मारी. १ तेथी कंटाळी आप दरबारे, आव्यो हुं शरणे महाराज... मारी. २ छतां मूके ना केडो आ दुनिया, अंध परीक्षा व्याज... मारी. ३ नामधारी कंई आपना ज भक्तो, पजवे कलंक दई आज... मारी. ४ न हो कोई अंतराय, मारा मारगमां, नहीं तो जाशे तुज लाज... मारी. ७ मूळ मारग निर्विघ्ने आराधुं, सहजानंद स्वराज..." मारी. ८ (28) ( सहजानंद सुधा : ६३ / ५९ )

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