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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
"काळनी केडीए घडीक संग, रे भाई ! आपणो घडीक संग, आतमने तो य जनमोजनम लागी जशे एनो रंग.... काळनी"०००१५
प्रथम आतमरंग लगाया था आनंदघनजी के द्वारा उपर्युक्त मुनिश्री भुवनविजयजी (आ.श्री. भुवनरत्नसूरि ) ने और उसे सुदृढ़ सुविकसित किया योगीन्द्र भद्रमुनिजी सहजानंदघनजी ने । अनेक उपकारकों-परमोपकारकों-में इन दोनों का इस प्रसंग पर सर्वाधिक स्मरण होता है जैन योग मार्ग की चिंतना-निरुपणा करते हुए । सहजानंदघनजी के महाप्रयाण के पश्चात् उनके ही समकक्ष परंतु अत्यंत गुप्त और सम्यग्-योगस्थ आत्मज्ञा माताजी का सुदीर्घ सहवास उपकारक रहा । और माताजी के भी १४ वर्ष पूर्व महाप्रयाण के पश्चात् सुदूर से भी निकट ऐसा विदुषी विमलाताई का, जैन योगमार्ग को दृढ़ करानेवाला मौनपूर्ण सामीप्य लाभ आज पर्यंत प्राप्त हो रहा है । यह सब मेरा परम सौभाग्य, पावन पुण्य समझता हूँ।
विमलाताई की ‘पर्युषण प्रसादी' और श्रीमद् राजचंद्रजी की साधना की अनुमोदक पुस्तिका 'अप्रमादयोग' से सुज्ञजन सुविदित ही हैं ।
सर्व से विशेष उपकार जैन मार्ग की सम्यग् साधना में तो इस आत्मा पर योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी का, उपर्युक्त अल्पावधि मात्र का होते हुए भी बड़ा ही मूल्यवान और चिरकाल का बन रहा है। उनकी प्रत्यक्ष संगति और महामूल्यवान पत्र-व्यवहार इस अल्पज्ञ की जनम जनम की पूंजीवत् रहे हुए हैं । इस लेखक की भाँति जोधपुर के भूतपूर्व डिस्ट्रीक्ट एवं सेशन्स जज श्री मगरुपचंदजी भंडारी 'सहजानंद सुधा' में (कुछ रिकार्डिंग 'परमगुरु प्रवचन' में) उनके ऐसे अनमोल प्रदान के विषय में लिखते हैं :___"उनकी वाणी का एक एक शब्द करोड़ो रुपयों का था और चिंतन करने योग्य था। ऐसे महापुरुषों की एक घड़ी की संगति वर्षों के अध्ययन से अधिक लाभदायक होती है।"
स्व. मुनिश्री सुशीलकुमारजी ने सिद्धाचलम्-अमरिका की एक सभा में श्री सहजानंदघनजी के कल्पसूत्र-प्रवचनों की केसेट-मंजुषा प्रकाशित करते हुए उन्हें स्वानुभव से भारत के सर्वोच्च योगी' बतलाया था। __श्री सहजानंदघनजी के सविशेष परिचय में आनेवाले विद्वद्वर्य स्व. श्री अगरचंदजी नाहटा और स्व. श्री भंवरलालजी नाहटा तो उनका विशिष्ट अंतरंग परिचय देते हुए उनकी वाणी को मूल्यांकनसे अतीत बतलाते हुए लिखते हैं -
"आज शेक्सपियर आदि के हस्ताक्षरों का मूल्य लाखों के ऊपर है। परंतु इस अध्यात्म मार्तण्ड सहजानंदघन प्रभु की वाणी और उनके लेखन का मूल्यांकन करना मेरे लिए असंभव है । उनका महत्त्व निर्विवाद है। कुछ पत्र तो अमूल्य रत्न हैं। उनसे नित्य नवीन दृष्टि प्राप्त होती है। आप परमज्ञानी सत्पुरुष थे । उन्होंने अनेक जन्मों में उत्कृष्ट आत्मसाधना की थी। आप हज़ारों श्रोताओं की मनोगत
१५ गीत : निरंजन भगत (मूर्द्धन्य गुजराती कवि)
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