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। श्री सहजानंदघन गुरूगाथा
शंकाओं का समाधान व्याख्यान में बिना पूछे ही कर देते थे यह अनेकबार अनुभव किया है। वे केवल आत्मा सम्बन्धित प्रश्नों का ही समाधान करते..... ।''१६ वर्तमान के ये प्रयोगवीर परमयोगी
वर्तमानकाल के इस प्रयोगवीर परमज्ञानी परमयोगी का इस अल्पज्ञ को अल्प-सा और अन्यों को एवं उपर्युक्त नाहटा विद्वद्वर्यों को सविशेष संग संप्राप्त हुआ । परंतु जिन्हें उनका बिलकुल संग मिला नहीं है वैसे जैन योगमार्ग के साधक उनके विषय में क्या कहते हैं ? योगसाधक एवं चिंतकलेखक जैन मुनिश्री चन्द्रप्रभ उनकी प्रयोगवीरता से प्रभावित होकर लिखते हैं :___"मैं समझता हूँ दुनिया में कुछ श्रेष्ठ पुरुष ऐसे होते हैं जिन पर कुछ लिखने या बोलने की इच्छा होती है, पर कुछ अमृत पुरुष ऐसे होते हैं जिन्हें मात्र समझने और जीने का ही भाव होता है। योगीराज सहजानंदघन साधनात्मक जीवन के प्रेरणा के प्रकाश-स्तंभ हैं । इतिहास पुरुष अगरचंदजी नाहटा जैसे लोग तो सहजानंदजी के पदों पर घंटों अपना विवेचन करते थे। ___"मैं अपने जीवन में जिन अध्यात्म-पुरुषों से प्रेरित-प्रभावित हुआ, योगीराज सहजानंदघन उनमें से एक हैं । मेरे जीवन में साधनाकाल की शुरुआत उन्हीं गुफाओं से हुई है, जिनमें कभी योगीराज सहजानंदघन स्वयं तपे थे । मुझे प्रसन्नता है कि मेरी साधना उन्हीं की साधनास्थली से जुड़ी है। सच तो यह है कि मुझे आत्मप्रकाश की प्रथम उपलब्धि उन्हीं की तपोभूमि में, उन्हीं की कन्दरा में हुई । इसलिए सहजतः मैं उनके प्रति साभार नतमस्तक हूँ।
"यद्यपि सहजानंदघनजी के सशरीर रहते हुए मुझे उनके सान्निध्य में रहने का अवसर नहीं मिला, पर मैंने उनकी गुफा में उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति का एहसास पाया है। ____ "योगीराज सहजानंदजी को मैं कलियुग में साधना का प्रतीक मानता हूँ। मेरी समझ से, साधना के लिए उन्होंने जितने प्रयत्न किये, वह अपने आप में अनुकरणीय हैं । साधना के लिए किस क्षेत्र का चयन किया जाए, इसके लिए उन्होंने देश के कई स्थानों का भ्रमण किया । वे अनेक स्थानों पर तपे, पर अन्ततः हम्पी का अरण्य और कन्दराएँ उन्हें रास आईं । मोकलसर की जिस सुनसान गुफा में वे तपे थे, उसे देखकर मुझे लगा कि इस भयंकर एकांत में रहकर साधना करना तभी सम्भव है, जब कोई व्यक्ति भय और लालसाओं पर विजय प्राप्त कर चुका हो । सिंह-भालू की बात न भी उठाएँ, पर इतना तो तय है कि वहाँ सर्प, बिच्छु, नेवले तो स्वच्छन्द विचरते ही थे । योगीराज सहजानंद के अध्यात्मप्रिय दृष्टिकोण और जीवन-शैली से मैं प्रेरित तो था ही, हम्पी में रहने से मुझे एहसास हुआ कि वे वास्तवमें निर्भय और अध्यात्मनिष्ठ थे।
"सहजानंदजी की निष्परिग्रहता और तपोभावना आदरणीय है । वे भगवान महावीर के 'एक वस्त्र, एक पात्र' के सिद्धान्त को जीनेवाले योगी थे । भोजन वे एक समय ही लेते (बिना नमक १६ श्री सहजानंदघन पत्रावली की प्रस्तावना : श्री भंवरलालजी : पृ. 6
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