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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
में रखे गए हैं। शेष सारी वैदिक पद्धति की प्रतिमाएं विविध देवताओं की हैं । फौजी मनुष्यों-सैनिकों के लिए पथ्थर की शिला में ही उत्कीर्ण थाली-कटोरियाँ भोजनपात्र के रूप में संग्रहीत हैं।
म्युझियम के निकटवर्ती खेतों में भी कुछ जिनालयों के ध्वंसावशेष हैं । वहाँ से आधे मील दूर १० हज़ार की जनसंख्यावाला कमलापुरम् गाँव है । उसके नुक्कड़ से कंपली की ओर जाती हुई सड़क पर कुछ दूर दायें हाथ पर एक वृद्धा का जिनालय विद्यमान है, जिसकी रचना सिंहनिषादी है। उसे कन्नड भाषा में "गणिगित्ति बसदी" कहते हैं। उसके प्रांगण में दीपस्तंभ पर के लेख में निम्नानुसार हकीकत है :
"मूल संघ, नंदीशाखा, बलात्कार गण, सरस्वती गच्छ में श्री पद्मनंदी आचार्य हए । (उसके बाद उनकी शिष्य परम्परा के कुछ नाम देने के बाद बतलाया है कि) राजा बुक्कराय के पुत्र हरिहर द्वितीय, उसके दंडाधिपति चैत्र, तत्पुत्र इरुग दंडेश कि जो मुनि सिंहनंदी के परम भक्त थे, उन्होंने यह श्री कुंथु जिनालय निर्मित करवाया ।" इस मंदिर में भी एक भी जिनबिम्ब नहीं है।
विजयनगर के पान-सुपारी बाज़ार के खंडहरों में एक शिलालेख है जिसमें सन् १३४८ में हुए राजा देवराय द्वितीय के द्वारा श्री पार्श्वनाथ का पाषाणमय जिनालय बनवाने का उल्लेख है ।।
म्युझियम के उत्तर की पहाड़ी खाई के उच्च प्रदेश में एवं पंपापति शिवालय के उत्तर में नदी तट पर कुछ जिनालयों के ध्वंसावशेष होने के चिन्ह हैं । ___ हंपी से ११ मील दूर नदी के बहाव (प्रवाह) के उद्गम की ओर विशालकाय तुंगभद्रा बांध (डॅम) है, जिसकी अपार जलराशि समुद्र की उपमा प्राप्त करती है । ___ वर्षाकाल में इस तुंगभद्रा नदी में से बाढ़ उतर जाने के बाद क्वचित् हीरे प्राप्त हो जाते हैं, जिन्हें खरीदने के लिए मद्रास के जौहरी चक्कर काटते रहते हैं।
हेमकूट की पूर्व दिशा में सड़क से सटकर लगभग तीस एकड़ के विस्तारवाला एक साधारण ऊंचाई वाला शिखर है जिसे रत्नकूट कहते हैं। उसके पूर्व छोर पर एक उन्नत शिखर है जिसे मातंगपर्वत कहते हैं । ठक्कर फेरु कृत रत्नपरीक्षा ग्रंथ में रत्नों की उत्पत्ति के स्थानों को दर्शाते हुए 'मायंग पव्वये' इस मातंग पर्वत का भी उल्लेख किया गया है। उसके कटिभाग में दो आरपार गुफाएँ हैं जिन में खुदाई किये जाने के चिन्ह हैं।
मातंग शिखर पर एक मंदिर और उसके चारों ओर मंडपों का समूह है। मंदिर में मातंगयक्ष की मूर्ति विद्यमान है, जिसे अजैन मातंगऋषि के नाम से पूजते हैं। संभव है कि उस मंदिर में सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ की स्थापना हुई हो और बाद में उसे अदृश्य किया गया हो !
रत्नकूट में नवरत्नों की खान होने की बातें पुरातत्त्व अन्वेषकों के पास से सुनी हैं । सांप्रत डामर रोड़ से रत्नकूट की ओर मुड़ते हुए दाहिने हाथ पर जो शिखर है उसका भी रत्नकूट में ही समावेश है, जिसमें दो लंबायमान बड़ी गुफाएँ और कुछ छोटी गुफाएँ हैं । इसके अतिरिक्त रत्नकूट के शेष हिस्सों में उत्तरी और दक्षिणी छोर पर भी कुछ गुफाएँ हैं । इन सब गुफाओं में कहीं कहीं खुदाई होने के चिन्ह हैं । फिर उनमें गुप्त मार्ग भी हैं जो अभी बंद हैं।
इस रत्नकट पर चार प्राकतिक जलकंड, दो-तीन छोटे खेत और बाकी का पढवी शिलामय विस्तार है। जिस पर वि.सं. २०१७ के आषाढ़ एकादशी के दिन श्रीमद् राजचंद्र आश्रम की स्थापना अत्यंत ही उल्लासपूर्वक योगानुयोग से हुई है।
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