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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
१६. ओरिस्सा भुवनेश्वर से ७ मील पश्चिम में खंडगिरि गुफाओं में कलकत्ता निवासी
श्री साहूजी और अन्य भक्तमंडल की ओर से । १७. कच्छ स्टेट रायघणगर गाँव की पहाड़ी गुफाओं में वहाँ के श्री जैन संघ की
ओर से। १८. नीलगिरि कूनूर के सुरम्य शिखरों में वहाँ के रइस श्री अनोपचंदजी झाबक की
ओर से । इन सब के अतिरिक्त इडरगढ़ की गुफाओं में, चंबलघाटी की अषादी पास की गुफाओं में, पंजाब में भीवानी शहर समीप और कर्नाटक में वरंग, कुन्दाद्रि आदि स्थानों में स्थायी होने का आग्रह उन सब स्थान-निवासियों ने अतीव किया था ।
फिर प्रथम से स्थापित श्रीमद् राजचंद्र आश्रमों में अपनाने हेतु इस देहधारी को स्निग्ध आमंत्रण भी संप्राप्त हुए थे, यथा : १. श्रीमद् राजचंद्र विहारभवन इडर-घंटिया पहाड़ पर वहाँ के ट्रस्टी श्री मणिलाल माधवजी ने
उदारता दर्शाई थी। २. श्रीमद् राजचंद्र आश्रम-अगास में स्थिर होने हेतु वहाँ के अधिष्ठाता पराभक्तिनिष्ठ पू.श्री ब्र.
गोवरधनदासजी ने अपने देहविलय के दो माह पूर्व आगामी चातुर्मास के मिस से आमंत्रण पत्र श्री पावापुरी तीर्थ के चातुर्मास के दौरान इस देहधारी को प्रेषित किया था । उनका प्रथम परिचय वि.सं. २००४ में हुआ । दो महीने बाद वहाँ से धामण की ओर प्रयाण करते समय उन्होंने स्वयं को परंपरागत संप्राप्त एक अद्भुत निधि अत्यंत उल्लासपूर्वक इस देहधारी को सौंपी थी, जिसका वर्णन करने की इच्छा इस देहधारी ने स्थगित श्रीमद राजचंद्र आश्रम-वडवा में स्थिर करने हेतु उस आश्रम के माननीय उत्साही अध्यक्ष
गुणानुरागी श्री मोहनभाई ने इस देहधारी को वि.सं. २०१५ से अनेक बार आमंत्रित किया था। ४. श्रीमद् राजचंद्र जन्म भवन-ववाणिया में स्थिर करने हेतु परम कृपाळु की ही अंगजा पू. मातेश्वरी
श्री जवलबा ने अपने सरल वात्सल्य से इस बालक को बहुत नवाजा था । उपर्युक्त समस्त स्थानों में स्थिर होने हेतु इस देहधारी को जब जब आमंत्रण मिला, तब तब इस आत्मा में ऐसा अंतर्नाद सुनाई देता था कि, "तेरा उदय दक्षिण में है"। तथा प्रकार का प्रत्युत्तर भी श्री शुभराजजी आदि कुछ लोगों को दिया गया था ।
इस दक्षिण भारत के कर्णाटक प्रदेश में गोकाक की जैन गुफाओं में दि. २२-२-१९५४ से दि. २२-२-१९५७ पर्यंत ३ वर्ष अखंड मौनपूर्वक की साधना यह देहधारी पूर्व में करके गया था। परंतु तथा प्रकार के समवाय-कारण के अभाव से इस हम्पी तीर्थ पर वह नहीं आ सका । किन्तु अंततोगत्वा महाराष्ट्र के बोरड़ी गाँव में वि.सं. २०१७ के प्रथम ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा पर्यंत २१ दिवस के अनायास साधे गए चिरस्मरणीय सत्संग प्रसंग के पश्चात् वह महाराष्ट्र के कुम्मोज तीर्थ पर आया।
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