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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
कालान्तर में भारत में उत्तर सीमा सरहद से मुसलमानों ने प्रवेश किया । वे उत्तर विभाग से भारत पर आधिपत्य जमाते जमाते यावत् यहाँ की तुंभगद्रा नदी के उत्तरी तट पर्यंत पहुँच आये ! नदी की उत्तरी सीमा में स्थित आनेगुंदी राज्य के राजा जम्बुकेश्वर को महमद-बिन-तुघलख और उसके सेनापति मल्लिकायर ने सन् १३१० में हराकर वह राज्य हड़प लिया । __ ऐसे विकट काल में तुंगभद्रा नदी के दक्षिण तट से लेकर कन्याकुमारी पर्यंत के हिन्दु राजाओं ने स्वरक्षा हेतु संगठित होकर यदुवंशी हुक्कराय को मंडलेश्वर बनाकर, जागरुक रहकर सन् १५६५ पर्यंत मुसलमानों को इस ओर प्रवेश करने नहीं दिया ।
हुक्कराय निःसंतान था । इसलिए उसने अपने अनुज बुक्कराय को अपना उत्तराधिकारी बनाया। आनेगुंदी नरेश जम्बुकेश्वर की पुत्री गौरांदेवी के साथ बुक्कराय का विवाह हुआ था। उसकी संतान परिपाटी चली। __ वे दोनों बन्धु विद्यारण्यस्वामी के भक्त थे । उनकी कृपा प्राप्त करके इस बंधुयुगल ने विजयनगर साम्राज्य की नींव डाली । सन् १३३६ में ६० मील के क्षेत्रफल विस्तार वाले विजयनगर का निर्माणकार्य प्रारम्भ हुआ। इसके पूर्व यहाँ हेमकूट को सटकर उत्तरीय खाई में हम्पी ग्राम और दक्षिण में कृष्णापुरम् ग्राम थे । हेमकूट तथा चक्रकूट नामक दो जैनतीर्थ भी थे तथा नदी पार भोट-जैन तीर्थ था । ये तीनों तीर्थ दिगम्बर संप्रदाय के अधीन थे । दिगम्बर जैन भट्टारकों के मठ भी थे ।
राजा बुक्कराय के समय में तीसरा एडवर्ड इंग्लैड की गद्दी पर था । बुक्कराय की पाट पर हरिहर द्वितीय और उसकी पाट पर राजा देवराय प्रथम राज्यारुढ़ हुए उस अर्से में यह नगर-निर्माण अच्छी तरह विस्तृत हो गया था। __इस साम्राज्य के सिंहासन पर कुछ समय बाद राजा कृष्णदेवराय वीस वर्ष की आयु में विराजित हुए । वे महान पराक्रमी सर्वधर्मसमस्वभावी और उदार थे । सर्वधर्म संरक्षण-सम्बन्धित उसके शिलाशासन अद्यापि यहाँ विद्यमान हैं।
सन् १५०९ से १५२९ तक के उसके शासनकाल में यह साम्राज्य अत्यंत विस्तृत हुआ । वर्तमान मैसुर राज्य, आंध्र राज्य, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र और केरल के कुछ मुख्य मुख्य भाग ये सारे इस राज्य के ही अंग थे। ओरिस्सा नरेश उसका अधीनस्थ था। संरक्षण विभाग में १० लाख सैनिक थे, उनमें से ३ लाख का लश्कर इस विजयनगर की छावनी में रहता था । यहाँ पाटनगर में नागरिक जनसंख्या १६ लाख से अधिक बतलाई जाती है।
इस राजा को सुवर्ण से तोला जाता था और उसका दान होता था। उसके स्मृतिचिन्ह के रूप में पथ्थर का विशाल तराजु ('तुलाभार') आज विद्यमान है । उस समय आठवाँ हेनरी इंग्लैंड की गद्दी पर था । अनेक विदेशियों ने इस नगर के दर्शन किए थे ऐसे उल्लेख मिलते हैं।
उसके बाद इस साम्राज्य के सिंहासन पर अच्युतराय और बाद में अंतिम हिन्दु राजा सदाशिवराय आए । सदाशिवराय बहुत कमज़ोर था । उसकी कमज़ोरी का लाभ उठाने के लिए मुसलमान नवाब
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