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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
आश्रमभूमि का स्वल्प परिचय : गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी के स्वयं के शब्दों में
___ (मूल गुजराती से अनूदित) जैनों, शैवों और वैष्णवों का प्राचीन तीर्थधाम यह हम्पी, वर्तमान मैसूर राज्य (कर्णाटक ) के बेल्लारी जिले में 'गंटकल हबली' रेलवे लाइन के होस्पेट स्टेशन से ७.२५ मील (१२ कि.मि.) दर पूर्वोत्तर कोने में बसा हुआ है । आवागमन हेतु एस.टी. बस सर्विस की पर्याप्त सुविधा है । पक्की सड़क,हरियाली भरा प्रदेश और ऐतिहासिक पुरातत्त्व सामग्री विश्व समस्त के यात्रियों को यहां खींचकर ले आते हैं।
इस आश्रम का परिचय प्राप्त करने हेतु इस भूमि का भी परिचय प्राप्त करना अनिवार्य है। उस परिचय में उसकी
सकी ऐतिहासिकता जानने योग्य होने से सर्वप्रथम वही यहाँ प्रस्तुत हो रही है। इस भूमि का इतिहास : ___"आज से प्रायः ११,८६,४९३ वर्ष पूर्व, जब बीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी इस भरत क्षेत्र में ज्ञानगंगा बहाकर भव्य कमलों को विकसित करते थे. तब उनके अनयायी वर्ग में विद्याधर भी अच्छी संख्या में सम्मिलित थे । उस विद्याधर वर्ग के विद्यासिद्ध राजाओं में रामायण प्रसिद्ध वाली सुग्रीव जहाँ राज्य करते थे और उनकी राजधानी जो किष्किंधा नगरी (वानर द्वीप) कहलाती थी, वही यह विद्याधर भूमि ।" ।
यहाँ की पहाड़ी शिलामय शिखर मालाओं में से कतिपय शिखरों के ऐतिहासिक नाम-ऋष्यमूक, गंधमादन, माल्यवन्त आदि पुरातत्त्व संशोधकों को मूक आह्वान दे रहे हैं। ____ अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान श्री महावीरदेव के शासनकाल में ईसा की चौथी शताब्दि पूर्व यहाँ आंध्रवंशी राजा राज्य करते थे । उसके पश्चात् चौथी शताब्दि में कदम्बवंशी राजाओं ने राज्य किया, जो जैनधर्मानुरागी थे। उनके तत्कालीन नगरों के अंतर्गत उदयशंगी नगर (था), कि जिसके अवशेष बेल्लारी जिले के हरपनहल्ली तालुके में हैं। __ हरपनहल्ली गाँव से १६ मील दूर अमजीगाम से प्राप्त एक शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि यहाँ के कदम्बों और कांची के पल्लवों का परस्पर भीषण युद्ध हुआ था। ___छठी शती के मध्यभाग में चालुक्यवंशी राजा कीर्तिवर्मन ने इस भूमि को अपने अधीन किया था । ये चालुक्यवंशी राजा प्रथमतः जैन थे परन्तु बाद में उन्हें बाह्य परिस्थितिवश शैव बनना पड़ा था।
उसके पश्चात् दसवीं शती के प्रारम्भ पर्यंत राष्ट्रकुट राजाओं ने यहाँ राज्य किया। दसवीं शती के उसके बाद के शेष समय में गंगवंशी और ग्यारहवीं शती में पश्चिमीय चालुक्यवंशी राजा यहाँ सत्ताधीश रहे।
चालक्यवंशी राजा तैल-द्वितीय के शिलालेख हरपनहल्ली के आसपास के 'भागली' और 'कोगली' गाँवों के जिनालयों में उपलब्ध हैं। फिर कोगली-जिनालय में होयशालवंशी राजा वीररामनाथ के भी दो शिलालेख विद्यमान हैं। २. अब तो 'विश्व पुरातन धरोहर संस्थान' बनने से यातायात सुविधाएँ बढ़ी हैं।
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