________________
★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * उस समय मणि का प्रकाश बहुत तीव्र होगा, वहाँ दो व्याल सर्प बैठे हुए दिखायी देंगे। तब दूर से ही मृदुवाणी में प्रार्थना करें। वासुकी सर्प ईश्वर के परम सेवक हैं, पृथ्वी पर सबके कार्यों को सिद्ध करते तथा बहुत दानी होते हैं । तत्पश्चात, वासुकी सर्प उस मनुष्य को अपनी भक्ति करते हुए देखकर प्रसन्न होते हैं तथा मणि उपहारस्वरूप अपने भक्त को प्रदान करते हैं।
इस प्रकार सब कार्य करते हुए अन्त में जब तक सर्प मणि न दे दे, तब तक वह व्यक्ति विनती करता रहे। इस विनती को स्वीकार करके सर्प मणि को छोड़कर पाताल वापिस चला जाता है किन्तु जब तक सर्प पाताल में चला न जाये तब तक मणि का स्पर्श भी न करें। जो व्यक्ति सर्प को मारकर या किसी भी प्रकार का कष्ट देकर मणि लेते हैं वे सात जन्मों तक कष्ट व दुःख भोगते हैं। जबकि जिन व्यक्तियों को व्याल सर्प प्रसन्नतापूर्वक मणि देते हैं वे व्यक्ति मणि से प्रभावित होने के कारण धन-धान्य, अन्न, वस्त्र, पुत्र आदि सम्पूर्ण सुखों से परिपूर्ण रहते हैं।
सर्पमणि के प्राप्त होने पर लाभ-सर्पमणि की पूजाकर धारण करने से तन्त्र-मन्त्र, जादू, मूंठ, भूत-प्रेत आदि का कुछ भी प्रभाव नहीं होता, भूत-भविष्य का ज्ञान प्राप्त होता है, समस्त प्रकार की बीमारियाँ नष्ट हो जाती है। मणि को मुँह में रखने से जमीन में गड़ा खजाना ज्ञात हो जाता है, इसके प्रभाव से सभी सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। जिस नगर में यह सर्पमणि होती हैं वहाँ पर अन्न तथा धन में वृद्धि होती जाती है । इस मणि को नदी में लेकर चलने से रास्ता ज्ञात हो जाता है। सर्पमणि सभी गुणों, वर्ण, रूप
और तेज में अतिश्रेष्ठ होती है। सर्पमणि को अन्धेरे में रखने से तेज विद्युत के समान प्रकाश उत्पन्न होता है।
पृथ्वीलोक के रत्न अग्निपुराण, शुक्रनीतिसार, बृहन्नारदीयसंहिता तथा अन्य पुराणों आदि में रत्नों को ग्रहण करने का माहात्म्य और उसका विधान विस्तृत रूप में पाया जाता है। रत्नों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रचलित है कि अम्बरीष नामक राजा महान विद्वान और देव, गौ, विप्र, ऋषियों का पूजक और प्रजापालन में दत्तचित्त रहा। एक दिन वह स्नानादि करके, वस्त्र, आभूषण पहन, स्वयं रत्नों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org