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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ के बाद शिवजी ने पार्वतीजी से कहा कि इन मणियों की परछाई भी जिन देवताओं और मनुष्यों पर पड़ जाये वे बहुत भाग्यवान होते हैं। मणियों के सम्बन्ध में सुनकर पार्वतीजी ने कहा-हे नाथ! कृपया पाताल लोक की सर्पमणियों के सम्बन्ध में भी कुछ बतायें और वह मनुष्यों को किस प्रकार प्राप्त हो सकती हैं।
पाताल लोक की सर्पमणियाँ भगवान् शंकर ने कहा-पाताल लोक में नौ जाति के सर्प होते हैं और उनके रंग भी भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे-लाल, काला, पीला, गुलाबी, हरा, श्वेत, नीला, मटिया, दूधिया। इन सर्पो का जो रंग होता हैं उसी रंग की मणि भी होती है। यह मणियाँ सभी वर्गों की तथा सूर्य के समान प्रकाशवान होती हैं। वासुकी नाग का सर्प इन सब सर्यों का स्वामी है। यह कभी-कभी पृथ्वी के घने जंगलों में आता है, फिर किसी व्याल नाम के सर्प को मणि देता तथा प्रसन्नतापूर्वक मणि की रोशनी में इधर-उधर घूमता, नाचता, खुश होता तथा पनः मणि को मुँह में रखकर पाताल वापस चला जाता है। बहुत भाग्यवान व्यक्तियों में से कोई दुर्लभ व्यक्ति की व्याल सर्प को प्रसन्न करके मणि को प्राप्त कर पाते हैं। सर्पमणि को कैसे प्राप्त करें? इसे प्राप्त करने का उपाय यह है कि पहले जिस वन में मणिधारी सर्प पाये जाते हैं उनकी तलाश करें। ये प्रमुखतया उत्तरप्रदेश के घनघोर, सुनसान जंगलों में पाये जाते हैं। कुछ पर्वतों जैसे विन्ध्याचल पर्वत की श्रेणियों में भी इनका स्थान होता है। मणिधारी व्याल सर्प को प्रसन्न करने के लिए, इत्र, अबीर, मिठाईयाँ, सफेद वस्त्र, फूल, कस्तूरी, सुगन्धित जल लेकर उस वन में जायें जहाँ व्याल सर्प हों वहाँ पर सर्प की बाँबी के समीप इन वस्तुओं को एक वस्त्र पर रख दें। जिस स्थान पर वह मणि रखता हो वहाँ पर सफेद वस्त्र पर पुष्पों को बिछाकर उस पर दूध से भरा बर्तन तथा सुगन्धित द्रव्य रखें जिसमें केशर, केवड़ा, गुलाब जल तथा अन्य सुगन्धित द्रव्य मिले हों।
इत्र, अबीर, चन्दन तथा मिठाईयों से पूर्ण एक थाल पूर्व सामग्री से थोड़ी दूरी पर रखें और शुद्ध हृदय से यह कार्य चार-पाँच दिनों तक करें इस कार्य से व्याल प्रसन्न हो जायेगा। यथासम्भव पाँचवें दिन वासुकी सर्प आयेगा।
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