Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ सिद्धान्त एवं चर्चा विशेष-प्रति प्रशुद्ध हैं। संस्कृत टीका सहित है । मूल गायायें नहीं है । म प्रकृति का सत्वस्थान भंग सहित गुणास्थान का वर्णन है।
जिनदेवं प्रणम्याहं मुनिचन्द्र' जगत्प्रभु। मकर्माकलिस्थानं संदणीमि गमागमं ॥३॥ णामिऊण बड्ढमायां करणयदि देवरायपरिपुन्छ । पयडीणसत्तठा योघे भगे समं वोछे ॥१॥
देवराजपरिपूज्यं कनकनिम बद्ध भानभगवद श्रमिट्टारकं नत्वा कर्मप्रकृतीना सत्वस्थान मंगसहितं गुणस्थाने वशमीति संबंध:
१२. प्रति २०७-पत्र संख्या-३४ । साइज ११-xk इश्च । लेखनकाल-१६७६मादत्रा सुदी १४ । पर्ण । देष्टन में० २१ । प्रति सटीक है । अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है।
विशेष-इति प्रायः श्री गोमट्टसारमूलात् टीकाश्च निष्काम्य अमेण एकीकृत्य लिखितां श्रीनेमिचन्द्र सैद्धान्तिक विरचित कर्मप्रकृतिग्रन्यस्य टीका समाप्ता।
लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है
सं० १६७६ वर्षे माद्रपदमासे शुक्सपो चतुर्दश्यां तिथौ संग्रामपुरवास्तव्ये महाराजाधिराजराजश्रीभावसिंहराज्ये शोमलसंधे थाम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये महारत श्रीपमनदिदेवातपट्टे भट्टारक शुभचन्द्रदेवा तत्पष्ट म० श्री जिनचन्द्रदेवा तत्प?' भट्टास्क श्री प्रमाचन्द्रदेवा तत्पट्टे श्रीचन्द्रकीर्तिदेवा तत्प म. श्री श्री श्री श्री श्री देवेन्द्रकीतिजी । तदाम्नाये खंडेलवालान्वये मौसा गोत्रे सा• गंगा तदभार्या गौरावे तयोः पुत्र सा• घेस्हा तद् भार्या थेलसिरि तयोः पत्र पंन । प्रथम सा. ताल्हु तद भार्या ल्होड़ी तयोः पुत्री ही सा- माजू तद् भायें है . बालहंदे, दि० प्रतापदे तत्यत्री द्वौं प्र० पुष सा० सावल तद् भार्या सहलालदें तयोः पुत्र चि० साहीमल, द्वि० पुय सा० साकर | साह ताल्छु द्वि पर सा० च तस्य मार्या गावदे । एतेषां मध्ये साह वाजू तद मायाँ बालहंदे इदं शास्त्र स्त्रययत-उधापनाथ भट्टारक श्री श्री श्री देवेन्द्र कीर्ति तत् शिम्य आचार्य श्री रामकीर्तिये दस ।
५३. कर्मप्रकृति विधान-बनारसीदास। पत्र संख्या-१३ । साइज--१.६४४ इञ्च । मावा-हन्दी । विषय-सिद्धान्त । रचनाकाल-६० १.०० । लेखककाल-१७६० | पूर्ण । श्रेष्टन नं. ८१२ |
विशेष—यह रचना बनारसीविलास में संगृहीत रचनाओं में से है । १४. प्रति नं०२-पत्र संख्या-५ | सावज-६x६३ दश्च । लेखनकाल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ३६७ ।
विशेष-कर्मग्रकृतिबिधान गुटके में है जिसमें निम पाठ और है-थानकों के १. नियम, सिंदूर प्रकरण(बनारसीदास) और अनित्य पंचाशिका-( त्रिभुवनचन्द )।