Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[सिद्धान्त एवं चर्चा दोहा-वृषभ प्रादि धौनीस को नमो नाम उरधार ।
कचु क संख्या कहत हु उत्तम नर की सार ॥१॥ प्रभमहि जिन चौबीस के कहीं नाम सखदाय 1
मोटि जनम के पाप ते दमक एक मैं जाय ॥२॥ छंद-प्रथम वृषम जिन देव, दूजी अजित प्रमानौ ।
तीजी संमत्र नाथ अभिनंदन चउ जानी ॥३॥ अन्तिम-इनका कथन वसेषतै प्रव नगरी प्रादि ।
मथ माहि ते जानयों जथा जोग धनवाद ॥६॥ पाठ बदन के कारण कियौ नाहि मैं मित ।
नाम मात्र अनुराग बसि घारि फियो हरि चित ०॥ छन्न सुन्दरी--जैनमत के व लखाय के। कहत हौं ये पाठ बनाय के।
नाम ए चित मैं जु धरै नरा । होय मिथ्या जाल सबै परा | ' मूल यूक जु होय सुधारयो । होसि पंडित माहि न फारयौं ।
करि निमा मो गुगण गहि लीजियो । राम कह फिरप तुम कीजियौ ॥७२॥ दोहा-ठारास चौरासिया वार सनीश्चर बार, पोस कृष्ण तिथ पंचमा कियो पाठ सुभ चार ||७३";
__"इति एक सौ घुणतर जीव पाठ संपूरणाशा
नित्र पाठ और है:
नाम
पत्र संख्या
पद्य संख्या
विशेष
६से २४ तुक
२२७
१२४
दस बैंच मेद वर्णन रामचन्द्र कत
(1) तीस चौवीसी पाठ (२) गणधर मुख्य पाठ (३) दसकरण पाठ (४) जयचन्द पचीसी १५) सागति जागति पाठ
६) बट फारिक पाठ
७) शिष्य दिशा कीसी पाठ (८) सात प्रकार वनस्पति उत्पत्ति पाठ {1) जीवमोद बत्तीधी पाठ
सं. १८४ मंगसिर वदी ११
mernam
४३ से ४४