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विषय
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शरीरादिको परद्रव्यत्वसिद्धि परमाणुको पिंडरूप होनेका कारण आत्मा पुद्गल पिंडका कर्ता नहीं है कर्मरूप पुद्गलोंका भी अकर्ता है शरीर भी जीवका खरूप नहीं है जीवका स्वरूप कथन ..... आत्मा बंधा हेतु
भावबंध द्रव्यबंधका' खरूप वंधका स्वरूप ...' द्रव्यबंधका कारण राग परिणाम जीवका अन्य द्रव्योंसे भेद मेदविज्ञान होनेका कारण आत्माका कार्य
* पुद्गलकर्मो के विचित्रपनेका हेतु... अभेदधरूप आत्मा है - निश्चय व्यवहारका अविरोध
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अशुद्धात्माके लाभका हेतु शुद्धात्माके लाभका हेतु.. शुद्धात्मा उपादेय है। आत्मासे अन्य हेय हैं
शुद्धात्माकी प्राप्ति से लाभ मोह-ग्रंथिके खुलने से लाभ
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ध्याताका स्वरूप सर्वज्ञानीके ध्यानका विषय शुद्धात्माकी प्राप्ति मोक्षमार्ग है. ग्रंथकर्ताकी शुद्धात्मप्रवृत्ति
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पू. गा.
'विषय
पृ. गा.
२२२६९ | मुनिपदकी पूर्णताका कारण आत्मामें लीनपना २८७।१४ २२४।७१ | सूक्ष्म परद्रव्यमें भी रागका निषेध
२८८/१५
२९०।१६
द
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२९१।१७
... २२८।७५ | संयमके छेदका स्वरूप. २३१।७७ | छेद २३२१७९ | अंतरंग छेदका सर्वथा निषेध २३३।८० परिग्रहका निषेध
२९२॥१८
२९४/१९
२३६।८१ | अंतरंग छेदका निषेध ही परिग्रहका निषेध है, यह कथन
२२३८३
२४०।८५
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२४३८८
२४५/९०
२४६।९१
... २४७।९२
२५०/९५
२५१।९६
२५२/९७
२५४।९८ २५५/९९
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३. चारित्राधिकारः मंगलाचरणपूर्वक कर्तव्यकी प्रेरणा मुनिदीक्षाके पूर्व कर्तव्य ...
श्रमणका लक्षण ...
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शरीरमात्र परिग्रहके पालनकी विधि योग्य आहार अनाहार तुल्य है। योग्य आहारादिका स्वरूप उत्सर्ग और अपवादमार्ग में मैत्रीभाव हो - से मुनिपदकी स्थिरता २५६।१०० इन दोनोंमें विरोध होनेसे मुनिपदकी
२५८।१०१
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अस्थिरता २५९।१०२ | मोक्षमार्गका मूलसाधन आगम ... २६०।१०३ | आगमहीनके कर्मक्षयका निषेध २६१।१०४ | मोक्षमार्गी जीवोंको आगम ही नेत्र है, यह २६३।१०५ २६५।१०७ | आगम-चक्षुसे ही सर्वका दीखना २६७|१०८ | | आगमज्ञानादि तीनोंसे मोक्षमार्ग
कथन
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प्रवचनसारः
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२७०।१ २७२/२ २७५/३
२७८/५
अंतरंगसंयमके घातका हेतु परिग्रह परिग्रहमें अपवादमार्ग .
जिस परिग्रहका निषेध नहीं है, उसका
स्वरूप
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३००।२३
उत्सर्गमार्ग ही वस्तुका धर्म है, अन्य नहीं है ३०१।२४ | अपवादमार्ग भेद
३०२/२५
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स्वरूप
३३२/४०
३३५/४२
२८०१७
द्रव्य-भावलिंगका लक्षण आदि से अंततक मुनिकी क्रियाओंके करआत्मज्ञान और आगमज्ञानादिकी एकता ही मोक्षमार्ग है.... नेसे मुनिपदकी सिद्धि एकताके न होनेसे मोक्षमार्ग भी नहीं है ३३६/४३ मुनि किसी समय में छेदोपस्थापक है। २८१८ |आगमज्ञानादिकी एकता ही मोक्षमार्ग है दीक्षा देनेवालेकी तरह छेदोपस्थापक दूसरे ऐसे सारांशका कथन आचार्य भी होते है .... २८३।१० शुभोपयोगीको मुनिपदसे जघन्यपना संयम भंग होनेपर उसके जोड़नेका विधान २८४|११ शुभोपयोगी मुनिका लक्षण भंगका कारण परसंबंधका निषेध
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२८६।१३ | शुभोपयोगीकी प्रवृत्ति
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३२३।३४
३२४।३५
३२५/३६ आत्म-ज्ञानका मोक्षमार्गमें मुख्य हेतुपना ३२९|३८ आत्मज्ञानसे रहित पुरुषके आगमज्ञानादि निष्फल हैं आत्मज्ञान और आगमज्ञानादिवाले पुरुषका
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३३०/३९
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१३१
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२९५/२०
२९७१२१
२९८२२
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३०६/२६ ३०८।२७
३०९।२८
३१३।३०
३१६।३१
३१८३२
३२१।३३
३३७१४४
३३८/४५ ३४०/४६ ३४११४७