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• प्रवचनसारः
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पुद्गलानां स्पर्शादिचतुष्कोपेतत्वाभ्युपगमात् । व्यक्तस्पर्शादिचतुष्काणां च चन्द्रकान्तारणियवानामारम्भकैरेव पुद्गलैरव्यक्तगन्धाव्यक्तगन्धरसाव्यक्तगन्धरसवर्णानामप्रद्योतिरुदरमरुतामारम्भदर्शनात् । न च क्वचित्कस्यचित् गुणस्य व्यक्ताव्यक्तत्वं कादाचित्कपरिणामवैचित्र्यप्रत्ययं नित्यद्रव्य स्वभावप्रतिघाताय । ततोऽस्तु शब्दः पुलपर्याय एवेति ॥ ४० ॥
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न भवति, दृश्यते च श्रवणेन्द्रियविषयत्वम् । शेषेन्द्रियविषयः कस्मान्न भवतीति चेत् — अन्येन्द्रियविषयोऽन्येन्द्रियस्य न भवति वस्तुस्वभावादेव रसादिविषयवत् । पुनरपि कथंभूतः । चित्तो चित्रः भाषात्मकाभाषात्मकरूपेण प्रायोगिकवैश्रसिकरूपेण च नानाप्रकारः । तच्च “सदो खंधप्पभवो" इत्यादि गाथायां पञ्चास्तिकाये व्याख्यातं तिष्ठत्यत्रालं प्रसङ्गेन ॥ ४० ॥
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पर्याय है, वह नासिका - इन्द्रियसे प्रत्यक्ष नहीं होता, अग्नि नासिका और जीभ इन दोनोंसे ग्रहण नहीं होती । पवन नासिका जीभ और नेत्र इन तीनोंसे ग्रहण नहीं होता, इस कारण 'जिस इंद्रियका जो विपय है, उस इंद्रियसे वही ग्रहण किया जाता है, ऐसा नियम तो है, परंतु ऐसा नहीं, कि जो पुगलकी पर्याय है, वह सभी इंद्रियोंसे ग्रहण होनी चाहिये' । इस कारण शब्द केवल कर्णेन्द्रियसे ही ग्रहण किया जाता है, शेष चार इंद्रियोंसे ग्राह्य नहीं है । यदि यहॉपर कोई अन्यवादी ऐसी तर्कणा करे, कि--- जलमें गंध गुण नहीं होनेसे नासिका जलको नहीं ग्रहण करती । अग्निमें गंध, रस, इन दोनों गुणोंके न होनेसे नासिका जीभ ये दोनों उसको ग्रहण नहीं कर सकती । पवनमें गंध, रस, रूप, इन तीनोंके न होनेसे 'नासिका, जीभ, नेत्र, उसको ग्रहण नहीं करते हैं ? इस तर्कका समाधान इस तरहसे है, कि ऐसा कोई पुद्गल नहीं है, जो कि स्पर्शादि चार गुणों में से एक या दो या तीन गुणोंको धारण करे, क्योंकि सभी पुद्गलों में चार गुण अवश्य होते हैं । इसका कारण यह है, गुणोंमें कमतीपना नहीं होता है, ऐसी सर्वज्ञकी आज्ञा है । इसलिये पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, इनमें स्पर्शादिक चारों गुण होते हैं, ऐसा जानना चाहिये। केवल मुख्य गौणका भेद है, वह इस प्रकार है— पृथिवीमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, ये चारों गुण प्रगट पाये जाते हैं, जलमें गंधकी गौणता है, अग्निमें गंध, रस, इन दोनोंकी गौणता है, पवनमें गंध, रस, वर्ण, इन तीनोंकी गौणता हैं । इसलिये सभी पुलोंमें चारों गुण होते हैं । इस वातकी सिद्धिके लिये दूसरी युक्ति भी दिखलाते हैंचंद्रकांतमणि (पाषाण) पृथिवीकायसे जल झड़ता है, जलसे पृथ्वीकाय मोती उत्पन्न होते हैं, अरणी लकड़ीसे अग्नि उत्पन्न होती है, जौ नामक अन्नके खानेसे पेटमें वायु हो जाता है । इस कारण पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुके पुद्गलों में भेद नहीं है, केवल परिणमनके भेदसे भेद है । इससे सिद्ध हुआ, कि सभी पुद्गलों में स्पर्शादि चार गुण पाये जाते हैं ॥ ४० ॥
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