________________
४९.] - .. . - प्रवचनसारः -- ..
१९९ व्याद्यंशानामभावादाकाशस्य परमाणोरिव प्रदेशमात्रत्वम् । भिन्नांशाविभागैकद्रव्यत्वेन चेत् अविभागैकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् । अनेकं चेत् किं सविभागानेकद्रव्यत्वेन किं वाऽविभागैकद्रव्यत्वेन । सविभागानेकद्रव्यत्वेन चेत् एकद्रव्यस्याकाशस्यानन्तद्रव्यत्वं, अविभागकद्रव्यत्वेन चेत् अविभागैकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् ॥४८॥
अथ तिर्यगूर्ध्वप्रचयावावेदयति__एको व दुगे बहुगा संखातीदा तदो अणंता य । दवाणं च पदेसा संति हि समय त्ति कालस्स ॥४९॥
एको वा द्वौ बहवः संख्यातीतास्ततोऽनन्ताश्च ।
द्रव्याणां च प्रदेशाः सन्ति हि समया इति कालस्य ॥ ४९ ॥ प्रदेशप्रचयो हि तिर्यप्रचयः समयविशिष्टवृत्तिप्रचयस्तदूर्ध्वप्रचयः । तत्राकाशस्यावस्थितानन्तप्रदेशत्वाद्धर्माधर्मयोरवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वाजीवस्यानवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वात्भावनिजात्मतत्त्वपरमैकाग्र्यलक्षणसमाधिसंजातनिर्विकाराहादैकरूपसुखसुधारसास्वादतृप्तमुनियुगलस्यावस्थितक्षेत्रं किमेकमनेकं वा । यद्येकं तर्हि द्वयोरप्येकत्वं प्राप्नोति न च तथा । भिन्नं चेत्तदा अखण्डस्यप्याकाशद्रव्यप्रदेश विभागो न विरुध्यत. इत्यर्थः ॥ ४८ ॥ अथ तिर्यक्प्रचयोर्द्धप्रचयौ निरूपयति- एक्को व दुगे बहुगा संखातीदा तदो अणंता य एको वा द्वौ करे, कि आकाशद्रव्य तो अखंड एक वस्तु है, उसमें प्रदेशरूप अंश कल्पना कैसे हो सकती है ? उसका समाधान-इस तरहसे है, कि निर्विभाग एक वस्तुमें भी अंश कल्पना बन सकती है। यदि ऐसा कहो, कि किस तरहसे होती है ? तो पहले अपने हाथकी दो अँगुली आकाशमें रक्खो, अब बतलाओ, कि दो अंगुलियोंका एक क्षेत्र है, कि दो क्षेत्र ? यदि कहो कि एक क्षेत्र है, तो यह प्रश्न उठता है, कि क्या वह अखंड एक आकाशकी अपेक्षा एक क्षेत्र है ? यदि ऐसा मानो, तब तो ठीक ही है, और जो दो अंगुलियोंकी भिन्नतासे दो अंश आकाशके कल्पना करनेपर उनकी अपेक्षा भी एक क्षेत्र कहोगे, तो जिस अंशकर एक अंगुलीका क्षेत्र है, उसी अंशका दूसरी अँगुलीका भी क्षेत्र है, ऐसा माननेसे अन्य अंशोंका अभाव हो जायगा। इसी
तरह दो आदि आकाशके अनेक अंशोंकर भिन्न भिन्न ही अनेक अंश मानोगे, तो • आकाश अनंत हो जावेंगे, और जो एक आकाशके अनेक अंश मानोगे, तो एक अखंड 'आकाशमें अंशकल्पना सिद्ध ही है ॥ ४८ ॥ आगे तिर्यक्प्रचय, ऊर्ध्वप्रचय इन
दोनोंका लक्षण कहते हैं-[द्रव्याणां प्रदेशाः] कालद्रव्यके विना पाँच द्रव्योंके .., निर्विभाग अंशरूप प्रदेश [एकः] एक [वा] अथवा [द्वौ बहवः ] दो अथवा
संख्याते [च] और [संख्यातीताः] असंख्यात [च] तथा [ततः] बाद .[अनंताः ] अनंत इस तरह यथायोग्य [सन्ति ] सदाकाल रहते हैं,