Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, A N Upadhye
Publisher: Manilal Revashankar Zaveri Sheth

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Page 472
________________ ३६.] - प्रवचनसारः - ३२५ त्वात् । विचित्रगुणपर्यायविशिष्टानि च प्रतीयन्ते, सहक्रमप्रवृत्तानेकधर्मव्यापकानेकान्तमयत्वेनैवागमस्य प्रमाणत्वोपपत्तेः । अतः सर्वेऽर्था आगमसिद्धा एव भवन्ति । अथ ते श्रमणानां ज्ञेयत्वमापद्यन्ते स्वयमेव, विचित्रगुणपर्यायविशिष्टसर्वद्रव्यव्यापकानेकान्तात्मकश्रुतज्ञानोपयोगीभूय विपरिणमनात् । अतो न किंचिदप्यागमचक्षुषामदृश्यं स्यात् ॥३५॥ अथागमज्ञानतत्पूर्वतत्त्वार्थश्रद्धानतदुभयपूर्वसंयतत्वानां यौगपद्यस्य मोक्षमार्गत्वं नियमयति आगमपुवा दिट्ठी ण भवादि जस्सेह संजमो तस्स । णत्थीदि भणदि सुत्तं असंजदो होदि किध समणो ॥ ३६॥ दर्शनखभावो योऽसौ परमात्मपदार्थस्तत्प्रभृतयोऽर्थाः । कथं सिद्धाः । गुणपज्जएहिं चित्तेहिं विचित्रगुणपर्यायैः सह । जाणंति जानन्ति । कान् । ते वि तान् पूर्वोक्तार्थगुणपर्यायान् । किं कृत्वा पूर्वम् । पेच्छित्ता दृष्ट्वा ज्ञात्वा । केन । आगमेण हि आगमेनैव । अयमत्रार्थः-पूर्वमागमं पठित्वा पश्चाजानन्ति ते समणा ते श्रमणा भवन्तीति । अत्रेदं भणितं भवति-सर्वे द्रव्यगुणपर्यायाः परमागमेन ज्ञायन्ते । कस्मात् । आगमस्य परोक्षरूपेण केवलज्ञानसमानत्वात् , पश्चादागमाधारण खसंवेदनज्ञाने जाते वसंवेदनज्ञानबलेन केवलज्ञाने च जाते प्रत्यक्षा अपि भवन्ति । ततः कारणादागमचक्षुषा परंपरया सर्व दृश्यं भवतीति ॥ ३५ ॥ एवमागमाभ्यासकथनरूपेण प्रथमस्थले सूत्रचतुष्टयं गतम् । अथागमपरिज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानयोंसे [आगमसिद्धाः] सिद्धान्तमें सिद्ध हैं, [तान् अपि] गुण पर्यायों सहित उन पदार्थोको भी [ ते श्रमणाः] वे मोक्षमार्गी महामुनि [हि ] निश्चयकर [ आगमेन दृष्ट्वा] सिद्धान्त-नेत्रसे देखकर [जानन्ति ] जानते हैं। भावार्थ-जितने जीव अजीवादि पदार्थ हैं, उनके गुण पर्यायोंके भेदसे जो स्वरूप हैं, वह अनादिनिधन सिद्धान्तमें अच्छी तरह सिद्ध किया है, अर्थात् सिद्धान्तमें द्रव्य, गुण, पर्यायका स्वरूप यथार्थ कहा है, किसी तर्क ( न्याय ) से खंडित नहीं होता, अविरोधरूप है । सहभावी गुण और क्रमवर्ती पर्याय इन दो भेदोंसे द्रव्यमें जो अनंतधर्म हैं, उन स्वरूप अनेकान्तको आगम कहा है, इससे प्रमाण है, क्योंकि नाना प्रकारके गुण पर्याय सहित सब द्रव्योंके अनेकांतस्वरूपका आगम कहनेवाला है । ऐसे आगम-नेत्रसे महामुनि सकल पदार्थों के स्वरूपको देखते हैं, जानते हैं । सब पदार्थ ज्ञेय हैं, महामुनि ज्ञाता हैं, द्रव्यश्रुत आगमको जानकर भावश्रुत ज्ञानके उपयोगी होकर परिणमे हैं, इस कारण महामुनि आगमके बलसे सबको देखते हैं, इसी लिये आगम-नेत्रसे कुछ भी अनदीखता नहीं रहता । इस कारण मोक्षाभिलापीको अभ्यास करना योग्य है ॥ ३५ ॥ आगे सिद्धान्तका ज्ञान और उस सिद्धान्तके अनुसार श्रद्धान और ज्ञान श्रद्धान संयुक्त संयम में तीनों

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