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- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला
[ अ० १, गा० १०
अन्तरेण वस्तु परिणामोऽपि न सत्तामालम्बते । स्वाश्रयभूतस्य वस्तुनोऽभावे निराश्रयस्य परिणामस्य शून्यत्वप्रसङ्गात् । वस्तु पुनरुर्द्धतासामान्यलक्षणे द्रव्ये सहभाविविशेषलक्षणेषु, क्रमभाविविशेषलक्षणेषु पर्यायेषु व्यवस्थितमुत्पादव्ययत्रौव्यमयास्तित्वेन निर्वर्तितं निर्वृत्तिमच्च । अतः परिणामस्वभावमेव ॥ १० ॥
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नास्ति । कस्मात् । संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् । अत्थं विणेह परिणामो मुक्तात्मपदार्थं विना इह जगति शुद्धात्मोपलम्भलक्षणः सिद्धपर्यायरूपः शुद्धपरिणामो नास्ति । कस्मात् । संज्ञादिमेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् । दवगुणपज्जयत्थो आत्मखरूपं द्रव्यं तन्नैव केवलज्ञानादयो गुणाः सिद्धरूपः पर्यायश्च इत्युक्तलक्षणेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु तिष्ठतीति द्रव्यगुणपर्यायस्थो भवति । स कः कर्ता । अत्थो परमात्मपदार्थः, सुवर्णद्रव्यपीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायस्थसुवर्णपदार्थवत् । पुनश्च किंरूपः । अस्थित्तणित्तो शुद्धद्रव्यगुणपर्यायाधारभूतं यच्छुद्धास्तित्वं तेन निर्वृत्तोऽस्तित्वनिर्वृत्तः, सुवर्णद्रव्यगुणपर्यायास्तित्वनिर्वृत्त सुवर्णपदार्थवदेवेति । अयमत्र तात्पर्यार्थः । यथा - मुक्तजीवे द्रव्यगुणपर्यायत्रयं परस्पराविनाभूतं दर्शितं तथा संसारिजीवेऽपि मतिज्ञानादिविभावगुणेषु नरनारकादिविभावपंर्यायेषु नयविभागेन यथासम्भवं विज्ञेयम्, तथैव पुद्गलादिष्वपि । एवं शुभाशुभशुद्धपरिणामव्याख्यानमुख्यत्वेन तृतीयस्थले गाथाद्वयं गतम् कोई ऐसा समझे कि, द्रव्यके विना परिणाम होता होगा, सो भी नहीं होता, [ अर्थं विना परिणामो न ] द्रव्यके बिना परिणाम भी नहीं होता । क्योंकि परिणामका आधार द्रव्य है । जो द्रव्य ही न होवे, तो परिणाम किसके आश्रय रहे । यदि गोरस ही न होवे, तो दूध, दही, घी, तत्र इत्यादि पर्यायें कहाँसे होवें, इसी प्रकार द्रव्यके विना परिणाम अपनी मौजूदगीको नहीं पासकता है । तो कैसा पदार्थ अपने अस्तिपनेको पासकता है, [ द्रव्यगुणपर्ययस्थः अर्थः ] जो द्रव्य गुण पर्यायों में रहता है, वह पदार्थ [ अस्तित्व निर्वृत्तः ] अस्तिपने ( मौजूदगी ) से सिद्ध होता है । भावार्थ - जिस जगह द्रव्य गुण पर्यायोंकी एकता हो, वहाँपर ही द्रव्यका अस्तित्व है। जो इन तीनोंमेंसे एक भी कम होवे, तो पदार्थ ही न कहलावे । जैसे सुवर्ण, और उसमें पीतादिगुण हैं, तथा कुण्डलादि पर्याय हैं । जो इनमेंसे एककी है, तो सोनेका अभाव ही होजाता है, ठीक इसी प्रकार दूसरे पद स्वरूप समझना । इससे यह बात सिद्ध हुई कि, परिणाम द्रव्यकविना द्रव्यका अभाव होजाता है । यहाँपर इतनी विशेषता और जैसा द्रव्य होता है, वहाँपर वैसे ही गुण पर्याय होते हैं, इस शुद्ध गुण पर्याय और अशुद्ध आत्माके अशुद्ध गुण पर्याय होते हैं
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अशुभ परिणामरूप परिणमता है, वहाँ इन अपने परिणामोंसे भाव संहिन
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हुआ उसी स्वरूप हो जाता है । जब शुद्धपरिणामोंरूप परिणमन
करत
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