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६.] : - ... प्रवचनसारः - . . . दण्डिवद्युतसिद्धस्यादर्शनात् । अयुतसिद्धत्वेनापि न तदुपपद्यते । इहेदमितिप्रतीतेरुत्पधत इति चेत् किंनिबन्धना हीहेदमिति प्रतीतिः । भेदनिबन्धनेतिचेत् को नाम भेदः । प्रादेशिक अताद्भाविको वा । न तावत्प्रादेशिकः, पूर्वमेव युतसिद्धत्वस्यापसारणात् । अताद्भाविकश्चेत् उपपन्न एव यद्रव्यं तन्न गुण इति वचनात् । अयं तु न खल्वेकान्तेनेहेदमितिप्रतीतेर्निवन्धनं, स्वयमेवोन्मन्ननिमग्नत्वात् । तथाहि-यदेव पर्यायेणार्ण्यते द्रव्यं तदेव गुणवदिदं द्रव्यमयमस्य गुणः, शुभ्रमिदमुत्तरीयमयमस्य शुभ्रो गुण इत्यादिवदताद्भाविको भेद उन्मजति । यदा तु द्रव्येणार्म्यते द्रव्यं तदास्तमितसमस्तगुणवासनोन्मेषस्य तथाविधं द्रव्यमेव शुभ्रमुत्तरीयमित्यादिवत्प्रपश्यतः समूल एवाताद्भाविको भेदो निमजति । एवं हि भेदे निमजति तत्प्रत्यया प्रतीतिर्निमजति । तस्यां निमजत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वं निमजति । ततः समस्तमपि द्रव्यमेवैकं भूत्वावतिष्ठते । यदा तु भेद उन्मजति, द्रव्ययोः संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि दण्डदण्डिवद्भिन्नप्रदेशाभावात् । इदं के कथितवन्तः । जिणा तच्चदो समक्खादा जिनाः कर्तारः तत्त्वतः सम्यगाख्यातवन्तः कथितवन्तः सिद्धं तह आगमदो सन्तानापेक्षया द्रव्यार्थिकनयेनानादिनिधनागमादपि तथा सिद्धं णेच्छदि जो सो हि परसमओ नेच्छति न मन्यते य इदं वस्तुखरूपं स हि स्फुटं परसमयो है, वैसे ही सत्ता स्वभावसिद्ध है। परंतु सत्ता द्रव्यसे कोई जुदी वस्तु नहीं है, सत्ता गुण है, और द्रव्य गुणी है। इस सत्ता गुणके संबंधसे द्रव्य 'सत्' कहा जाता है। सत्ता
और द्रव्यमें यद्यपि गुणगुणीके भेदसे भेद है, तो भी जैसे दंड और दंडीपुरुषमें भेद है, वैसा भेद नहीं है । भेद दो प्रकारका है-एक प्रदेशभेद और दूसरा गुणगुणीभेद । इनमेंसे सत्ता और द्रव्यमें प्रदेश भेद तो है नहीं, जैसे कि दंड और दंडीमें होता है। क्योंकि सत्ताके और द्रव्यके जुदा जुदा प्रदेश नहीं हैं, गुणगुणीभेद है, क्योंकि जो द्रव्य है, सो गुण नहीं है, और जो गुण है, सो द्रव्य नहीं है। इस प्रकार संज्ञा संख्या लक्षणादिसे भेद करते हैं । द्रव्य-सत्तामें सर्वथा भेद नहीं है । कथंचित्प्रकार भेद है, किसी एक प्रकारसे अभेद है। इस भेदाभेदको द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनयके भेदसे दिखलाते हैं-जब पर्यायार्थिकनयसे द्रव्यका कथन करते हैं, तब द्रव्य गुणवाला है, यह उसका गुण है । जैसे वस्त्र द्रव्य है, यह उसका उज्वलपना गुण है। इस प्रकार गुणगुणी भेद प्रगट होता है । और जब द्रव्यार्थिकनयसे द्रव्यका कथन करते हैं, तव समस्त गुणभेदकी वासना मिटजाती है, एक द्रव्य ही रहता है, गुणगुणी भेद नष्ट होजाता है । और इस प्रकार भेदके नष्ट होनेसे गुणगुणी भेदरूप ज्ञान भी नष्ट होता है, तथा ज्ञानके नष्ट होनेसे वस्तु अभेदभावसे एकरूप होकर ठहरती है। पर्याय कथनसे जब द्रव्यमें भेद उछलते हैं, तब उसके निमित्तसे भेदरूप ज्ञान प्रगट होता है, और उस