Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 16
________________ प्रस्तावना १. प्रारम्भिक--आचार्य भावसेन त्रैविद्यदेव का विश्वतत्त्वप्रकाश नामक ग्रन्थ कुछ ही समय पहले इसी ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुआ है। उन का न्यायविषयक दूसरा ग्रन्थ 'प्रमाप्रमेय' अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं। २. ग्रन्थकार--इस ग्रन्थ के कर्ता आचार्य भावसेन का विस्तृत परिचय हमने विश्वतत्त्वप्रकाश की प्रस्तावना में दिया है। अतः यहां उस का सारांश ही देना काफी होगा । प्रन्थकार मूलसंघ, सेनगण के आचार्य थे । त्रैविद्य यह उन की उपाधि थी अर्थात वे व्याकरण, तर्क और आगम इन तीन विद्याओं में पारंगत थे। उन के समाधिमरण का स्मारक आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले में अमरापुरम् ग्राम के समीप है। इस स्मारक का शिलालेख कन्नड भाषा में है तथा विश्वतत्त्वप्रकाश की प्रशस्ति के कुछ पद्य भी कन्नड में हैं । अतः ग्रन्थकार भी कन्नडभाषी रहे होंगे ऐसा प्रतीत होता है। उन के नाम से ग्रन्थसूचियों में निम्नलिखित ग्रन्थों का पता चलता है१. विश्वतत्त्वप्रकाश, २. कातन्त्ररूपमाला, ३. प्रमाप्रमेय, ४. सिद्धान्तसार, ५. न्यायसूर्यावली, ६. भुक्तिमुक्तिविचार, ७. सप्तपदार्थीटीका, ८. शाकटायनव्याकरण टीका, ९. न्यायदीपिका तथा १०. कथाविचार। इन में से पहले दो प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरा इस पुस्तक में प्रकाशित हो रहा है। चौथे, पांचवें तथा छठवें ग्रन्थ के सूक्ष्मचित्र जर्मनी से प्राप्त हुए हैं किन्तु उन के अध्ययन का प्रबन्ध अभी नही हो सका है। शेष ग्रन्थों के बारे में अधिक विवरण नही मिल सका है। ग्रन्थकार का समय तेरहवीं सदी के उत्तरार्ध में अनुमानित है । उन्हों ने बारहवीं सदी तक के ग्रन्थों का उपयोग किया है तथा तुरुष्कशास्त्र का उल्लेख किया है, अतः सन १२५० यह उन के समय की पूर्वमर्यादा है। उन की कातन्त्ररूपमाला की एक प्रति सन १३६७ की लिखी है, यही उन के समय की उत्तरमर्यादा है। ३. प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम---ग्रन्थकर्ता ने इस ग्रन्थ के नामका दो प्रकार से उल्लेख किया है - प्रथम श्लोक में प्रमाप्रमेय यह नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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