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तीसरा भाग
१२५० मनःपर्यय ज्ञानी १००० वादी मुनि
२०००० ४५००० मार्यिका १००.०० श्रावक २००००० श्राविकाएं
(१२) मायुके एक मास शेष रहने तक मापने सारे आर्य खंडमें विहार किया और विना इच्छाके दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश देकर प्राणियों का हित किया।
(१३) जब आयु एक मास बाकी रह गई तब दिव्यध्वनिका होना बन्द हुमा और सम्मेद शिखर पर्वतपर इस एक माहमें शेष कर्मोका नाश कर एक हजार मुनियों सहित वैसाख वदी १४ को मोक्ष पधारे। इन्द्रोंने मोक्षल्याणक उत्सव मनाया।
पाठ २। जयसेन चक्रवर्ती ।
(ग्यारहवें चक्रवर्ती) (१) भगवान् नमिनाथके समयमें ग्यारहवें चक्रवर्ती जयसेन हुए। ये कौशांबी नगरीके इक्ष्वाकुवंशी राजा विजय और रानी प्रभाकरीके पुत्र थे।
(२) इनकी आयु तीन हजार वर्षकी और शरीर माठ हाय