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तीसरा भाग
... (४) ई० पूर्व ३२३ के जून महीनेमें सिकन्दरकी बाबुलमें मृत्यु हुई । यह सुनते ही पंजाब और सीमांतके राजा स्वाधीन को गये । इन सबके नेता चन्द्रगुप्त बने और उत्तर पश्चिम भारतमें बल प्राप्त करनेके बाद उन्होंने मगध राज्यपर चढ़ाई करने का विचार किया। इस समय चन्द्रगुप्त की अवस्था २३ वर्षकी थी।
(५) जिस समय चंद्रगुप्त ने मगधपर चढ़ाई करने का संकला किया, उसी समय उसकी प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ चाणिक्य ब्राह्मणसे भेट हुई । एक समय राजा नन्दने चाणिक्य का अपमान किया था ! चाणिक्य अपने अपमानका बदला चुकानेकी वाट देख रहा था। चंद्रगुप्तसे मिलकर वह बहुत प्रसन्न हुमा और दोनों एक दुसरेके सहायक बन गये।
. (६) सन् ईस्वीके ३२० व पूर्व चन्द्रगुप्तने नीतिज्ञ चाणिक्य और सीमांत प्रदेशके पवन क आदि राजाओंके साथ मगध पर चढ़ाई की और नन्द राजाको समूल नष्ट कर मगधका राजा सिंहासन प्राप्त किया । नंदराजाके वीस हजार घुड़सवार, दो लाख पैदल, दो हजार रथ और चार हजार हाथी उसके आधीन हुए । . ... (७) चन्द्रगुने अपनी सैना वृद्धि की। उसकी सैनामें तीस हजार घुड़सवार, नौ हजार हाथी, छः हजार पैदल और बहुसंख्यक स्थ थे। ऐसी दुर्जेय सैनाकी सहायतासे उन्होंने नर्मदा तक उत्तर भारत के सभी राजाओंको जीत लिया। चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्यका विस्तार बंगालकी खाड़ीसे. भरव समुद्र तक होगया और वह सर्वथा भारतके प्रथम ऐतिहासिक चक्रवर्ती सम्राट् कहलाने के अधिकारी हुए।
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