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तीसरा भाग
पाठ २६ । आचार्यप्रवर उमास्वामी ! तत्वार्थसूत्रकारमुमास्वामिमुनीश्वरम् ।
श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देहं गुणमन्दिरम् ।। (१) पाच र्य प्रवर उमास्वामी (उमास्वाति ) का नाम 'तत्वार्थसूत्र' नामक ग्रन्थ के कारण अजर अमर है। यह ग्रन्थ जैनों की 'बाईबिल' है और खूबी यह कि संस्कृत भाषामें सबसे पहला यही जैन ग्रंथ है। सचमुच भाचार्य उमास्वामीने ही जैन सिद्धांतको प्राकृतसे संस्कृत भाषामें प्रकट करने का श्रीगणेश किया था और फिर तो इस भाषामें अनेकानेक जैनाचार्योंने ग्रन्थ रचना की।
(२) श्री उमास्वामीकी मान्यता जैनोंके दोनों सम्प्रदायों दिगम्बर और श्वेतांवरमें समान रूपसे है । और उनका 'तत्वार्थसूत्र' अन्ध भी दोनों संप्रदायोंमें श्रद्धाकी दृष्टिसे देखा जाता है।
(३) किंतु ऐसे प्रख्यात भाच र्यके जीवनकी घटनामोंका ठीक हाल ज्ञात नहीं है । श्वेतांवरीय शास्त्रोंसे यह जरूर विदित है कि न्यग्रोविका नामक नगरी उमास्वामी का जन्म हुमा था। उनके पिताका नाम स्वाति और माताका नाम वात्सी था । वह कौभीषणि गोत्रके थे; जिससे उनका ब्रह्मण या क्षत्री होना प्रगट है । उनके दीक्षागुरु ग्यारह अंगके धारक घोषनंदि क्षमण थे और विद्याग्रहणकी दृष्टिसे उनके गुरु मूल नामक वाचकाचार्य ये । उमास्वामी भी