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तीसरा भाग
है। इस कालके बने हुए सुन्दर मन्दिर, भव्य मूर्तियां, विशाल सरोवर और उन्नत राजप्रासाद माज भी दर्शकोंके मन मोहलेते हैं।
(१७) गङ्ग राष्ट्र की उस समय अपने पड़ोसी राजाओं के प्रति जो नीति थी, उससे चामुण्डरायकी गहन राजनीतिका पता चलता है। उस समय राष्ट्रकूट राजाओंकी चलती थी। चामुण्डायने गङ्ग राजाओंसे उनकी मैत्री करा दी; बल्कि उनके लिये पई लड़ाइयां लड़कर उन्हें ग्ङ्गवंशका चिर ऋणी बना दिया। इस प्रकार युगप्रधान र ठौर राजाओंसे निश्चिन्त होकर उन्होंने रङ्ग राज्यकी भी वृद्धि की थी।
(१८ ) मंत्रीप्रवर चामुण्डरायके शासनकाल में जिस प्रकार गंगवाड़ि देशको अभिवृद्धि धन संपदा और कलाकौशलके द्वारा हुई थी, वैसे ही साहित्यकी उन्नति भी खूब हुई थी। सच पूछिये तो साहित्योन्नतिके विना देशोन्नति हो ही नहीं सक्ती । चामुण्डराय इस सत्यको अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने स्वयं साहित्य रचनाका महत्तर कार्य अपने सुयोग्य हाथोंसे सम्पन्न किया था। और तो और, युद्धक्षेत्रकी शिन्हीं शांत घड़ियों में भी वह साहित्यको नहीं भूले थे। कनड़ी चामुण्डरायपुराण युद्ध क्षेत्रमें ही उन्होंने रचा था। गंगवाड़ियोंमें कनड़ी भाषाकी ही प्रधानता थी और तब उसकी उन्नति भी खूब हुई। गंगराजाओं और चामुण्डरायने श्रेष्ठ कवियोंको अपनाकर उन्हें खासा प्रोत्साहन दिया। इनमें भादिपम्प, पोन्न, रण्ण और नागवर्म उल्लेखनीय हैं। कनड़ी साहित्य के साथ ही उससमय संस्कृत और प्राकृत साहित्यकी भी उन्नति यहां हुई थी।