Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 138
________________ तीसरा भाम (५) राजपुत्र मकलदेव जन्मसे ही ब्रह्मचारी थे। उन्होंने विवाह नहीं किया था। कथाग्रंथों में उनके एक भाई निष्कलङ्क और बताये गये हैं। यद्यपि कोई २ विद्वान उनके होने में शंका करते हैं । सो जो हो, कथाग्रन्थमें कहा है कि वे भी उनकी तरह ब्रह्मचारी थे। भालङ्कदेवके समयमें बौद्धधर्म जैन धर्मके साथ २ चल रहा था और जैनियोंसे उसकी स्पर्धा अधिक थी। जगह जगहपर जैनियोंको उससे मुकाबिला लेना पड़ता था। जैनधर्मका सिक्का जमाने के लिये तब एक बड़े तार्किक विद्वान्की मावश्यक्ता थी। मकलङ्कदेवने इस बात का अनुभव कर लिया और उन्होंने अपनेको इस पुनीत कार्यके लिए उम्तर्ग कर दिया। (६) तब पोनतग* नामक स्थान में बौद्धोंका एक विशाल महाविद्यालय था। दूर दूरसे बौद्ध विद्यार्थी उसमें पढ़ने आते थे। भकरू देव भी उसी विद्यालय में प्रविष्ट होगये ! कथाग्रन्थ कहते हैं कि बौद्ध विद्यालय में प्रविष्ट होने के लिये उन्हें और उनके भाई निकलङ्कको बौद्ध भेष धारण करना पड़ा था। यह दोनों ही भाई तीक्ष्ण बुद्धि थे। इन्होंने शीघ्र ही न्याय मौर बौद्ध सिद्धांतका खासा ज्ञान प्राप्त कर लिया। एक बार बौद्धगुरुको इनके बौद्ध होनेमें संदेह हो गया और उसने पता चला लिया कि वास्तवमें यह बौद्ध नहीं जैन हैं । जैन होने के कारण बौद्धगुरुने उन्हें कैद कर दिया; किंतु भकलङ्क निकलङ्क वहांसे निकल भागे। निकलङ्कने अपने भाई मकरकको जैनधर्म प्रभावनाके लिए सुरक्षित स्थानको भेज * पोनतग वर्तमान 'ट्रिवटूर' स्थानके निकट बताया जाता है।

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