Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 137
________________ प्राचीन जैन इतिहास। १२० 'कवि' की पदवीसे भी वे विभूषित थे। यह एक मादरणीय पदवी थी जो उस समय प्रसिद्ध और उत्तम लेखकोंको दी जाती थी। लघु समन्तभद्र और विद्यानंदने उनको ' सकलतार्किकचक्रचूडामणि' विशेषण देकर स्मरण किया है। मकलङ्कचंद्रके नामसे भी उनकी प्रसिद्धि है। (३) अ.लङ्कदेवको कोई जिनदास नामक जैन ब्राह्मण भौर कोई जिनमती ब्राह्मणिकाका पुत्र और कई पुरुषोत्तम मंत्री तथा पद्मावती मंत्रिणी का पुत्र बतलाते हैं; परन्तु ये दोनों ही नाम यथार्थ नहीं हैं। वे वास्तवमें राजपुत्र थे। उनके 'राजवातिकालङ्कार' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के प्रथम अध्याय के अंमें लिखा है कि वे * लघुहन्य' नामक राजाके पुत्र थे: जीयाचिरमकलङ्कब्रह्मालधुहन्यनृपतिवरतनयः । अनवरतनिखिलविद्वज्जननुतविद्यः प्रशस्तजनहृयः ॥ (४) कलङ्कदेवका जन्म स्थान क्या है, इसका पता नहीं चलता । तो भी मान्यखेटके आसपास उसका होना संभव है। क्योंकि मान्यखेट के राजाओंकी जो , चलाबद्ध नामावली मिलती है उसमें लघुहव्व नामक राजाका नाम नहीं है, इसलिये वह उसके भासपासके मांडलिक राजा होंगे । एकर वे राजा साहसतुंग या शुभतुंगकी राजधानी मान्यखेट में माये थे । इससे मालूम होता है कि मान्यखेटसे उनका संपर्क विशेष था। कनड़ी · राजावलीकथे' में भकलङ्कदेवका जन्म स्थान कांची ( कांजीवरम् ) बतलाया गया है। संभव है कि यह सही हो ।

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