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प्राचीन जैन इतिहास। ११६ गोनुरके मैदान के बीच उन्होंने जो रण शौर्य प्रकट किया उसके कारण वह · वीर मार्तण्ड ' कहलाये । उच्छंगिके किलेको जीतकर वह ' रणरंगसिंह ' होगये और बागलूरके गोविंदराजको उसका मधिकारी बना दिया। इसलिए वह · वैरीकुलकालदण्ड' नामसे प्रसिद्ध हुए । कामराजके गढ़में उन्होंने जो विजय पाई, उसके उपलक्षमें वह भुजविक्रम कहलाये। नागवर्माको उसके द्वेषका उचित दण्ड देने के कारण वह ' छकदङ्कगङ्ग' विरुदसे विभूषित किये गये थे । गङ्गमट मुडु राचय्यको तलवारके घाट उतारनेके उपलक्षमें वह · समरपरशुराम' और 'प्रतिपक्ष राक्षस' उपाधियोंसे विभूषित हुए थे । भटवीरके किले का नाश करके वह 'मट मारि' नामसे प्रसिद्ध हुए थे। और चूंकि वह वीरोचित गुणोंको धारण करने में शक्य थे एवं सुझटोंचे महान् वीर थे, इसलिए वह क्रमशः 'गुणवम् काव' और 'सुभटचूड़ामणि' कहलाते थे। चामुण्डरायकी यह विरुदावळी उनके विक्रम और शौर्यको प्रष्ट करती है। सचमुच वह 'वीर-शिरोमणि' थे।
(१६) चामुण्डराय महान योद्धा और सेनापति ही नहीं बलिक राजमंत्री और उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ भी थे। राजमंत्रीके पदसे उन्होंने किस ढङ्गसे गा राज्यकी शासन व्यवस्था की थी, उसको बतानेवाले यधपि पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं; किंतु यह प्रगट है कि उनके मंत्रित्व काल में देशमें विद्या, कला, शिल्प और व्यापारकी मच्छी उन्नति हुई थी। गङ्ग-राष्ट्र के लोगोंकी अभिवृद्धि विशेष होना चामुण्डरायके शासनकी सफलता और सुचारुताका प्रत्यक्ष प्रमाण