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प्राचीन जैन इतिहास। १०८ * गंगवादी' नामसे प्रसिद्ध था और वहां ईस्वी दुसरी शताब्दीसे जैनधर्म प्रतिपालक गंगवंशी क्षत्रिय वीरों का राज्याधिकार था । गंप वंशमें मारसिंह द्वितीय नामक एक राजा ईस्वी दसर्वी शताब्दीमे हुए । चामुण्डराय इन्हीं के सेनापति और राजमंत्री थे। इनके राज्य. काल में गङ्गसेनाने चेर, चोल, पांड्य और नोरम्बाडि देशके पल्ला गजामोंसे रणांगणमें लोहा लिया था और विजयश्री उसके भाग्य में रही थी। भाखिर सन् ९.७५ ई० में मार सिंहने आचार्य श्री अजि. तसेनके निकट बङ्कापुरमें समाधिमरण किया था। उपरांत राजमल्ल द्वितीयने गंग वंश के राजसिंहासनको सुशोभित किया था और इनक बाद राक्षस गंग राज्याधिकारी हुए थे। चामुण्डरायने इन दोनों राजाओंकी कीर्तिगरिमाको अपनी ममूल्य सेवाओं द्वारा सुरक्षित रक्खा था।
(३) यह दीर्घायु और भाग्यशाली चामुण्डराय ब्रह्म-क्षत्रवंशके रत्न थे। उनके माता पिता कौन थे और उनका जन्म कहां और किस तिथिको हुआ था, दुर्भाग्य से इन बातों का पता इसी तरह नहीं चलता जिस तरह श्री नेमिचन्द्राचार्य के प्रारम्भिक जीवनका कुछ भी वृतांत नहीं मिलता ! हां, यह स्पष्ट है कि चामुण्डरायका अधिक समय गंगोंकी राजधानी तलकाडमें व्यतीत हुमा था।
(४) चामुण्डरायकी माताका नाम काललदेवी था और वह जैन धर्मकी दृढ़ श्रद्धालु थीं । श्री चामुण्डरायने धर्म प्रतीति उन्हींसे ग्रहण की थी। मच्छे बुरेको समझते ही चामुण्डरायने श्री