Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ प्राचीन जैन इतिहास। ११० विशेषणोंसे स्मरण किया है। शासनाधिकार जैसे महत्तर पदपर • पहुंचकर भी उन्होंने नैतिक आचरण का कभी भी उल्लंघन नहीं किया, तब भी उनके निष्ट पदारेषु मातृवत् और पाद्रव्येषु लोष्टवत्" की उक्ति महत्वशाली होरही थी। मरने ऐसे ही गुणोंक कारण वह -शौचाभरण कहे गये हैं। साथ ही खूबी यह है कि अपनी सत्य. निष्ठा के लिये वह इस कलिकाल में 'सत्य युधिष्ठि' कहलाते थे। वैसे उनके वैयक्तिक नाम 'चामुण्डराय' 'य' और 'गोम्मटदेव' थे, किंतु अपने वीचिन गुणों के कारण वह · वीर मार्तण्ड' मादि नामोंसे भी प्रख्यात थे। उनके पूर्वभव के सम्बन्धमें कहा गया है कि कृतयुग' में वह · सम्मुख ' के समान थे. त्रेत युगमें 'राम' के सदृश और कलियुगमें 'वीर मार्तण्ड ' हैं । इन वातोंसे उनके महान् . व्यक्तित्वका सहन ही अनुमान लगाया जासक्ता है । (६) श्री चामुण्डाय के प्रारम्भिक जीवन के विषय में थोड़ा बहुत वर्णन मिलता है किन्तु उनके गुरु श्री नेमीचन्द्राचार्य के सम्बन्धमें कुछ भी ज्ञात नहीं होता। उनके माता-पिता कौन थे ? उनका जन्म स्थान क्या था ? उन्होंने कहां किससे जिनदीक्षा ग्रहण की, यह कुछ भी मालूम नहीं होता । हां, उनके साधुनीवनकी जो घटनायें मिलती हैं उनसे उनका एक महान पुरुष होना सिद्ध है। वह मूलसंघ और देशीगण के आचार्य थे। ' गोम्भटसार' में उन्होंने -श्री अभयनंदि, श्री इन्द्रनंदि, श्री वीनंदि और श्री कनकनंदिको गुरुवत् स्मरण किया है; किन्तु उनके खास गुरु कौन थे, यह नहीं कहा जाता।

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144