Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 126
________________ २११ तीसरा भाग (७) चामुण्डरायजीका श्री नेमिचंद्राचार्यसे घनिष्ट सम्पर्क था। जिनके घरमें आचार्य महाराजकी विशेष मान्यता थी। एक रोज भाचार्य महाराजने पौदनपुरके श्री गोम्मटेश्वरकी विशाल मूर्तिका वर्णन किया । उसका हाल चामुण्डरायकी माता पहलेसे सुन चुकी थी। उन्होंने निश्चय किया कि उस पावन-तीर्थकी यात्रा अवश्य वरूँगी । तदनुसार चामुण्डरायने यात्रा-संघ ले चलने का प्रबन्ध किया । आचार्य नेमिचन्द्र भी उसके साथ चले। जिस समय यह संघ श्रवणबेलगोलके निकट भाकर पड़ा, तो वहां मालूम हुमा कि पोदनपुरकी यात्रा सुगम नहीं है। वहांका मार्ग कुक्कट-सर्पाच्छन्न हो रहा है। (८) धर्मवत्सल चामुण्डरायकी माला इन दुःखद समाचारोंको सुनकर खिन्नमना हुई; किन्तु श्री नेमिचन्द्राचार्य का योग तेज उनको ढ ढस बंधाने में सफल हुअ! । नेमिचन्द्रनीको श्री पद्मावती. देवीने आकर बताया कि जहां संघ ठहग हुआ है, वहीं निकटकी पहाड़ीपर रामरावणसे पूनी हुई एक प्राचीन विशालकाय बाहुबलिजीकी मूर्ति उकेरी हुई है । लोग उसे भूले हुये हैं। उसका उद्धार कराकर चामुण्डरायजीकी माताकी मनोकामना सिद्ध कराइये । श्री नेमिचन्द्राचार्य जीने उस दिन अपनी धर्मदेशनामें इस सत्यका उद्घाटन कर दिया। सारे संघके सदस्। यह वर्ष समाचार सुनकर प्रसन्न हो गए । चामुण्डरायने अपनी माताको संतुष्टि के लिए उस पर्वतपर स्थित प्राचीन मूर्तिका उद्धार करना प्रारम्भ करा दिया। ठीक समयपर एक विशालकाय मूर्ति वहां बनकर तैयार होगई ।

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