Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ प्राचीन जैन इतिहास। ९८ जन्मतिथि क्या थी, इसका पता माजतक नहीं लगा। किन्तु यह सष्ट है कि उनके पिता फणिमंडलान्तर्गत · उग्गपुर ' के क्षत्रीजा थे। उग्गपुर तब कावेरी नदी के किनारे बसा हुमा था । वह बन्दरगाह और एक बड़ा ही समृद्धिशाली जनपद था। जैनोंका वह केन्द्र था । इसी जैन केन्द्र में स्वामीजीका बाल्य जीवन व्यतीत हुआ था। ... (३) तब स्वामी समन्तभद्राचार्य - शान्तिवर्म' नामसे प्रसिद्ध थे । शांतिवर्मने बहुत करके अपनी शिक्षा दीक्षा गपुर में ही पाई थी! पर यह नहीं कहा जासक्ता कि उन्होंने गृहस्थावस्था में प्रवेश किया था या नहीं ! हां, यह सष्ट है कि वह छोटी उम्रमें ही संसासे विरक्त होकर साधु होगये थे । सचमुच बाल्यावस्थासे ही समन्त. भद्रने मानेको जिनशासन और जिनेन्द्रदेवकी सेवा के लिए अर्माण कर दिया था। उनके प्रति भापको नैपर्गिक प्रेम था और आपका रोम २ उन्हींके ध्यान और उन्हीं की वार्ताको लिये हुये था। भापकी धार्मिक परिणतिमें कृत्रिमताकी जरा भी गंध नहीं थी । भाप स्वभा. वसे ही धर्मात्मा थे और आपने अपने मन्तःकरणकी भावाजसे प्रेरित होकर ही जिनदीक्षा धण की थी। (४) सच बात तो यह है कि समन्तभद्रजी युगप्रधान पुरुष थे। क्रांति उनके जीवन का मूल सूत्र था। कोई भी बात उन्हें इसलिये मान्य नहीं थी कि वह पुरातन प्रथा है अथवा किसी अन्य पुरुषने उसको वैसा ही बताया है। बल्कि वह 'सत्य' की कसौटीपर हर बातको कस लेना मावश्यक समझते थे। जैन मुनि होने के पहले उन्होंने स्वयं जिनेन्द्रदेवके चारित्र और गुणकी जांच की थी और

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144