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तीसरा भाम अनुकरणीय शासनका विवरण लिखा है । चन्द्रगुप्तका आदर्श उसके राजकौशल और पराक्रमके लिये उसका नाम स्वर्णाक्षरों में मङ्कित रहेगा।
(११) चंद्रगुप्त पहले ही विजयी स्म्राट थे, जिनका शासन विदेशों तक में था। उनका राज्यशासन प्रत्येक प्राणीके लिए सुखकर था।
(१२) चन्द्रगुप्तको बालकाळसे ही जैन धर्मपर श्रद्धा थी। श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली उनके धर्मगुरु थे। जैन मुनि उनके राज्यों सदैव विहार करते थे। वह बड़ी भक्ति और श्रद्धासे उनको माहारदान देते थे।
(१३) एक समय महाराजा चन्द्रगुप्त रात्रिको निद्रामें थे तब उन्होंने पिछले. पहरमें नीचे लिखे हुए सोलह स्वप्न देखे
(१) सूर्यको मस्त होता हुमा देखा। (२) धूलसे माच्छादित रत्नराशि देखी । (३) करमवृक्ष की शाखा टूटती हुई देखी। ( ४ ) समुद्रको सीमा उल्लंघत करते देखा। (५) बारह फणवाला सर्प देखा। (६) देव विमानको उलटते देखा । (७) ऊँटपर चढ़ा हुमा राजपुत्र देखा। (८) दो काले हाथियों को कड़ते देखा। (९) रथमें २ बछड़ोंको जुता हुमा देखा। (१०) बन्दरको हाथीपर चढ़ा हुआ देखा। (११) भूतप्रेतोंको नाचते हुए देखा।