________________
प्राचीन जैन इतिहास । ४ पद' संस्थाओंको स्थापित किया और प्रजाकी सम्मति के अनुकूल शासन किया। पौर' संस्थाका संबंध राजधानी और नगरोंके शास. नसे था। और जानपद' संस्था ग्रामोंका शासन करनेके लिये नियुक्त थी। .. hi (१२) खारवेल बड़े दानी थे। उन्होंने राज्यके नवे वर्ष
हत भगवान का अभिषेक करके उत्सव मनाया था और अडतालीस लाख चांदीके सिक्कोंसे प्राचीन नदीके तट पर 'महाविजय' प्रासाद बनवाया और ब्राह्मण तथा अन्य लोगोंको किमिच्छक' दान दिया।
( १३ ) गजा खारवेलने कुमारी पर्वतपर जैन मुनियों के रहने के लिए गुफ'एं और मंदिरादि बनवाए और जैन धर्मका महा अनुष्ठान किया। उस सम्मेलनमें भारत के जैन- यति और पण्डितगण उपस्थित हुए थे। इसके लिए अखिल जैन संघने उन्हें 'भिक्षुराज'
और "धर्मराज' की उपाधि दी और उनका जीवनचरित्र पाषाण शिलापर लिखा गया। यह शिलालेख उड़ीसा प्रांत के खंडगिरिउदयगिरि पर्वतकी हाथी गुफा में मौजूद है और जैन इतिहास के लिए बड़े महत्वकी वस्तु है।
.. - "(१४.) शिलालेखमें सन् १७० ई० पूर्वतक वाग्वेलकी जीवन घटनाओंका उल्लेख है । उस समय उनकी भायु करीब ३७ वर्षकी थी । उनका स्वर्गवास सन् १५२ ई० पूर्वके लगभग हुमा है, उनके बाद उनका पुत्र कुदेयश्री खरमहामेघवाहन राजा हुआ ।