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वीरसंघके कुछ आचार्य ।
(लेखक-बाबू कामताप्रसादजी जैन, अलीगंज । )
पाठ २५ ।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य |
मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमो गणी । मङ्गलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधर्मोस्तु मङ्गलं ॥
( १ ) दि दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में भगवान् कुन्दकुन्दस्वामीका आसन बहुत ऊंचा है। जैन मंदिरोंमें प्रतिदिन उपरोक्त श्लोकको दुहराकर भक्तजन उनकी गिनती गणधर गौतमके बाद करते हैं । सचमुच दिगम्बर संप्रदायका मूलाधार इन आचार्यप्रवरके महान् व्यक्ति में स्थित है। यदि कुन्दकुन्दाचार्य न होते तो शायद ही दिगम्बर संप्रदाय कभी उन्नतशील होता ।
( २ ) अन्य प्रसिद्ध दिगम्बर आचार्योकी तरह भगवत् कुन्दकुन्देका सम्बन्ध दक्षिण भारत से है। दक्षिणभारत में ईस्वी पहली शताब्दि के लगभग पिदथनाडु नामका एक प्रदेश था । उस प्रदेशमें - कुरुमरई नामक एक गांव था। गांव कुरुमई में एक धनी वेश्य
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करमुण्डकी पत्नी
रहते थे । उनका नाम करमुण्ड था। सेठ
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