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प्राचीन जैन इतिहास। ८१
(८) चन्द्रगुप्त भारतमें अपने साम्राज्यको बढ़ाने और पुष्ट करने में लगे थे। उधर पश्चिम एशिया में सिकन्दरका एक सेनापति अपनी शक्ति बढ़ाकर सिकन्दरके जीते हुए भारतीय प्रान्तोंको चंद्र गुप्तसे छीन लेने की तैयारी कररहा था। उसका नाम सेल्यूकस था। उसने सिंधुदी पार की। वह पहिली लड़ाई में ही चन्द्रगुप्तकी सेनाका पक्का न संमाल सका और उसे दबकर संधि करनी पड़ी। उसने अपने साम्राज्यके काबुल, कंधार, हिगत और मकरान प्रदेश चन्द्रगुप्तको दिए। इसके बदलेमें चन्द्रगुप्तने ५०० हाथी उसे दिए । इतना ही नहीं, वह विजयी मौर्य सम्र को अपनी बेटी भी व्याह देनेको बाध्य हुमा । इस तरह दो हजार वर्ष पहलेसे भी भारतीय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य उन काबुल, कंधार भादि प्रदेशोंगर भारतीय पताका उडाने में समर्थ हुए थे, जिनपर न कभी दिल्ली के मुगल सम्र टोंकी जीत हुई और न अंग्रेजी राज्यको ही ऐसा देखना नसीब हुमा।
(९) ई० पूर्व ३०३ में चन्द्रगुप्त मौर्य संपूर्ण उत्तर भारत के राजा बन गये और भारत के विदेशी नरेशकी सत्ता समाप्त करदी । और अपने बाहुबलसे काबुल, कंधार, हिरात मादिमें हिन्दुओंका प्राधान्य स्थापित किया। उन्होंने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र कायम की और चाणिक्यको प्रधानमंत्री नियुक्त किया । चंद्रगुप्त के राज में पाणी मात्रके हिसका मन रक्खा गया था।
- (१०) यूनान देशका मेगस्थनीज नामक राजदुत उनके दरबारम भाकर रहता था। उसने मौर्य साम्रज्यके भादर्श और