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प्राचीन जैन इतिहास । ८० अपने पतिकी भाज्ञासे साधुओंके पास श्वेत वस्त्र पहिनने के लिए. भेज दिए । साधुओंने उन्हें स्वीकार कर लिया, उस दिनसे वे सब साधु श्वेतांबर कहलाने लगे। इनमें जो साधु प्रधान थे उनका नाम जिनचन्द्र था ।
पाठ २३। महाराज चन्द्रगुप्त। (१) वीर निर्वाण संवत् १६२ के लगभग मगधदेशके नन्द वंशमें चंद्रगुप्त का जन्म हुआ था। आपकी माताका नाम मुग था। इसीसे आप मौर्यके नामसे प्रसिद्ध हुए।
. (२) राजकुमार चंद्रगुप्तकी मायु निस समय १२ वर्षके लगभग थी, उस समय महापद्म नामक नन्द राजाने अपना भघिकार मगधपर जमाया, उस समय चंद्रगुप्तकी माता उन्हें लेकर अपने पिताके यहां भागई। चंद्रगुप्तने वहांपर शस्त्र तथा अन्य विद्याओंका अध्ययन किया।
(३) चंद्रगुप्त बड़े पराक्रमी और वीर थे, किसी प्रकार उनकी वीरताका पता राजा नन्दको लग गया। नंदके कोपसे बचने के लिये चन्द्रगुप्त अपनी मातासे विदा मांग कर पश्चिम भारतकी ओर चला गया। उस समय ३२६ ई० पूर्व पंजाबमें सिकन्दर महानने सीमा, प्रांत और पंजाबके कुछ हिस्सेपर मधिकार जमा लिया। चन्द्रगुप्तने सिकन्दरकी सेनामें रहकर उसका संचालन किया।