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प्राचीन जैन इतिहास । ४०
रसोइएने खीर परसी, खीर कुछ गर्म थी, इतनी गर्म खीर देखकर गुस्से से उस वर्तनको रसोइएके सिरपर दे मारा, रसोइया मरकर व्यंतरदेव हुआ ।
( ४ ) अपना पूर्वजन्मका हाल जानकर वह व्यंतर सन्यासीके वेष में राजा के पास आया और बहुतसे फल लाया । राजाको फक स्वादिष्ट लगे, उसने फलोंकी उत्पत्तिके विषय में पूछा । सन्यासीने कहा- महाराज ! मेरा घर टापूमें है, वहां एक सुन्दर बगीचा हैं, उसीके ये फल हैं। राजा सन्यासी के साथ टापूकी ओर चला । जब वह समुद्र के बीच में पहुंचा तब उसने राजाके मारने को उसे समुद्र में डुबोना चाहा, परन्तु णमोकार मंत्र जपने के कारण वह उसका कुछ न कर सका । अन्तमें ब्रह्मदत्तने व्यंतरके कहने पर णमोकार मंत्र का अपमान किया, जिससे उसने चक्रवर्तीको उसी समय मारकर समुद्र में फेंक दिया। चक्रवर्ती मरकर सातवें नरक गया ।
पाठ १३ ।
भगवान पार्श्वनाथ । तेईसवें तीर्थंकर |
( १ ) भगवान नेमिनाथके मोक्ष जानेके बाद तेरासी हजार सातसौ पचास वर्ष बीत जाने पर भगवान् पार्श्वनाथ हुए ।
(२) भगवान् के पिनाका नाम विश्वसेन और माताका नाम अमादेवी था। ये बनारस के राजा काश्यपगोत्री थे ।