________________
- तीसरा भाग
समय बाद ही सेठ सुभद्रदत्तका स्वर्गवास होगया। उनके स्वर्गवासके. बाद ही दोनों स्त्रियों में कभी तो धनके लिये और कभी पुत्रके लिये लड़ाई होने लगी। वसुदत्ता कहती कि पुत्र मेरा और वसुमित्रा कहती कि मेरा । सेठ साहूकारोंने मापसमें उनका निवटारा करना चाहा, परन्तु दोनोंमें से कोई भी उसे माननेको मंजुर न थीं। मंतमें वे दोनों महाराजाके दरबार में आई और अपना हाल सुनाया।
स्त्रियोंकी विचित्र बात सुनकर महाराजा श्रेणिक चकित हो गये। वे यह न जान सके कि पुत्र किसका है। उन्होंने स्त्रियोंको बहुत समझाया, किंतु उन्होंने एक न म.नी तब महाराजाने कुमार भभयको बुलाया और उनके साम्हने स्त्रियों का हाल सुनाया। कुमारने दोनों स्त्रियोंको बुलाकर समझाया परन्तु वे दोनों पुत्रको अपना २ बतलाती रहीं। तब अन्त में कुमारने बालकको जमीनपर रखवा दिया । अपने हाथमें तलवार ले उसे बालकके पेटपर रखकर स्त्रियोंसे कहा माप घबडाएं न, मैं अभी इस बालक के दो टुकड़े किए देता हूं। भाप एक एक टुकड़ा ले लें। यह सुनकर वसुमित्राको अपने बालक पर बड़ी दया आई।
वह बोली-कुमार ! भाप बालकके टुकड़े न करें, वसुदत्ताको दे दें, यह बालक वसुदत्ताका ही है। यह सुनकर कुमारने जान लिया कि बालक वसुमित्राका ही है और उसे बालक देकर वसुदत्ताको राज्यसे निकलवा दिया।
(१५) इसी समय अयोध्या में बलभद्र नामक गृहस्थ रहता था, उसकी स्त्री बड़ी सुन्दरी थी। उसका नाम भद्रा था। वह