________________
प्राचीन जैन इतिहास। ७६ मुझे इसकी क्या भावश्यक्ता है। मेरा इकलौता बेटा जम्बुकुमार दीक्षा लेकर वनको जा रहा है फिर मैं इस संपत्तिका क्या करूंगी ?
(७) जम्बूकुमारकी माताको शोक संतप्त देखकर और अपनी अटूट धन संपत्तिसे विक्त जग्बूकुमारके साधु होनेके समाचार सुनकर वह अपना कार्य भूल गया। उसने माता सामुख प्रण किया कि मैं कुमारको समझाकर रोदूंगा और यदि उन्हें नहीं रोक • सकंगा तो मैं भी साधु बन जाऊंगा।
(८) विद्युतप्रभने कुमारको मुनि दीक्षाके रोकनेका भरसक प्रयत्न किया, पर वह फल न हुआ तब उसने अपने ५०० 'मित्रोंके साथ २ दीक्षा ग्रहण की और अनेक उपसर्गोको सहन करते हुये घोर तपश्च ण किया। अंतमें अपनी आयु समाप्तकर तपके प्रभावसे वह महमिन्द्र पदको प्राप्त हुए।
पाठ २२। श्री भद्रबाहु-अंतिम श्रुतकेवली।
(१) पुंडूवर्धन देशके कोटीपुर नगरके सोमशर्मा नामक 'पुरोहितके यहां आपका जन्म वीर निर्वाण सं० १६२ में हुमा था। मापकी माताका नाम श्रीदेवी था।
(२) जब भद्रबाहु आठ वर्षके थे तब एक दिन वे अपने साथियों के साथ गोलियां खेल रहे थे। सब बालक अपनी होशियारीसे गोलियोंको एक पर एक रख रहे थे। किसीने दो, किसीने चार, किसीने छह और किसीने माठ गोलियां ऊपर तले चढ़ा दी