________________
बीसस भात
पाहार लेचुके और वनको चले तब पुष्पडाकने सोचा कि जब गृहस्थीमें थे तब मेरे बड़े मित्र थे। इसलिए पुरानी मित्रताके नाते इन्हें कुछ दूर पहुंचा भाना चाहिए। पुष्पडालके घरमें एक कानी स्त्री भी, उससे माज्ञा लेकर वह मुनिराजक पीछे पीछे चला । बहुत दूरसक जाने के बाद पुष्पडाल मुनिके सामने खड़ा होगया और नमस्कार किया। मुनिराजने उसे धर्मवृद्धि देकर धर्मका स्वरूप सुनाया।
(१२ ) ज्ञान वैराग्यका उपदेश सुनकर पुष्पडालका मन संसारसे उदास होगया और उसने वारिषेण मुनिके पास दीक्षा ले ली। वह बहुत दिनों तक शास्त्रोंका अभ्यास करते रहे और संयम पालते रहे, परन्तु उनका मन उस कानी स्त्रीकी ओर कभी कभी माकर्षित हो जाता था।
(१३) एक दिन पुष्पडालको अपनी स्त्रीकी गहरी खबर हो पाई, वह मनमें सोचने लगा-बेचारी मेरी स्त्री मेरे विछोहमें पागल होरही होगी, इसलिए घर जाकर कुछ दिन उसे गृहस्थीका मुख देकर पीछे दीक्षा लूँगा। यह सोचकर वह घरकी ओर चलने लगा।
(१४ ) वारिषेण मुनि उसके मनकी बात जान गए और उसे धर्ममें स्थिर करने के लिए उसे अपने साथ राजगृह लेगए ।
(१५) वारिषेणने घर पहुंचकर अपनी मातासे कहा, हे माता ! मेरी स्त्रियोंको गहनोंसे सजाकर मेरे पास लाओ। रानी बेलना उनकी सभी स्त्रियोंको ले माई और वे सब मुनिको नमस्कार कर खड़ी होगई ! तब वारिषेणने पुष्पडालसे कहा-देखो ! ये मेरी स्त्रियां