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तीसरा भाग आकाशमें उड़ता था उसमें बठाकर रानी विजयाको वह आकाशमें उड़ाने का अभ्यास कराने लगे।
(३) काष्टांगारको रानीकी आधीनतामें रहना बुरा लगने लगा । इसलिये उसने सत्यंधरको मारकर स्वयं राजा बन जाने का विचार किया । उसने एक सैना राजाके मारनेको भेजी । राजाने रानीको मयूर यंत्रमें बिठाकर उड़ा दिया और भाप सैनासे लड़ते २ मृत्युको प्राप्त हुआ।
(४) मयूयंत्र बाहर इमशानमें गिरा, वहां राजपुरीका प्रसिद्ध सेठ आने मृतक पुत्र को जलाने भाया था। विनयारानीने वहीं पुत्र प्रसव किया और छोड़ दिया। सेठने पुत्रको देखा और घर लेजाकर अपनी स्त्रीको देदिया। सेठानीने बालकका जीवंधर नाम रखा और पुत्र के समान पालन किया। रानी विजया दण्डकारण्यमें तपस्वियोंके आश्रममें चली गई।
(५) सेठ के यहाँ रहकर जीवंधर युवावस्थाको प्रप्त हुआ । उन्होंने भार्यनन्दी भाचार्य के निकट सभी विद्याओंको प्राप्त किया। उनका शरी। बड़ा सुदृढ़ था, वे बड़े वीर और पराक्रमी थे।
(६) एक समय नंद गोपकी सभी गायोंको भील लेगए । नंद गोपने घोषणा की कि मेरी गाएं जो वापिस लौटा देगा उसे अपनी कन्या दूंगा। जीवंधरने भीलोंसे युद्ध करके नंद गोपकी सभी गायोंको वापिस लाकर उसे संतुष्ट किया।
. (७) उन्होंने गांधार देशकी राज्यकन्या गंधर्वदसाको वीणा बजानेमें जीतकर उससे अपना विवाह किया।