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तीसरा भाग
वाना चाहते हो उसका नमूना भेजिये, वैसी ही भेज दी जायगी। . (१०) इसप्रकार राजा श्रेणिकने जो कुछ मांगा उसका यथोचित उत्तर उन्हें मिल गया। वे ब्रह्मणोंको सजा देना चाहते थे पर नहीं देसके। उन्हें मालूम हुमा कि कोई विदेशी पुरुष नंदगांवमें है, वही गांवके लोगोंको ये सब बातें सुझाया करता है। उनकी इच्छा उस पुरुषके देखनेकी हुई। उन्होंने एक पत्र में लिखा कि आपके यहां जो विदेशी आकर रहा है उसे मेरे पास भेजिये परन्तु न तो वह रातमें आए और न दिनमें, न सीधे मार्गसे आए और न टेढ़े-मेढ़े मार्गसे'।
(११) अभयकुमारको पहले तो कुछ विचारमें पड़ना पड़ा परन्तु फिर उमे युक्ति सूझ गई। वह संध्याके समय गाड़ीके कोने में बैठ गया और गाड़ी को इस तरह चलवाया कि उसका एक पहिया सड़कपर और एक खेतपर चलता था । . (१२ ) जब वह दरबार में पहुंचे तो देखा कि सिंहासनपर एक साधारण पुरुष बैठा है, उस पर श्रेणिक नहीं है। वह समझ गए कि इसमें कोई युक्ति की गई है। उन्होंने एकवार अपनी दृष्टि राजसमापर डाली, उसे मालूम हुआ कि राजसमामें बैठे हुए लोगोंकी नजर वारवार एक पुरुषपर पड़ रही है और वह अन्य लोगोंकी अपेक्षा सुन्दर और तेजस्वी है । पर वह राजाके अंगरक्षकोंमें बैठा है। अभयकुमारको उसी पर सन्देह हुआ, तब उनके कुछ चिन्होंको देखकर उन्हें विश्वास होगया कि यही राजा श्रेणिक है। उसने जाकर उन्हें प्रणाण किया। श्रेणिकने उठाकर उसे छातीसे लगा लिया।