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प्राचीन जैन इतिहास। ६. एक दिन अपने घरके छतपर खड़ी थी। उसे उसी नगरके वसंत नामक एक धनवान क्षत्रियने देखा। वह भद्राकी सुन्दरतापर हृदयसे मोहित होगया । एक समय उसने एक चतुर दूतीको भद्राके पास भेजा। दूतीने वसंतके धन वैभव और रूपकी खूब प्रशंसा की। भोली भद्रा उसकी बातोंमें भागई और वह वसंतके धन वैभवपर मोहित होगई । वह दतीके साथ वसंतके घर जानेको राजी होगई और उसके साथ भोगविलास भी होने लगा।
भद्राका पति बलभद्र किसान था । एक दिन भद्राको खेतपर जाना पड़ा। दैवयोगसे भद्राकी मट गुणसागर मुनिसे होगई। मुनि गुणसागरको भतिशय रूपवान तेजस्वी और युवा देखकर वह मोहित होगई। उसने उनसे भोगकी प्रार्थना की। उन्होंने भद्राको ब्रह्मचर्य
और शील धर्मका उपदेश दिया । मुनिका उपदेश सुनकर भद्राके हृदयमें शीलवत जागृत होउठा, उसने मुनिराज के सामने शीकव्रतकी प्रतिज्ञा ली और जैन धर्मको ग्रहण किया। भद्राने अब वसंतके यहां जाना छोड़ दिया और दूतीके द्वारा कहला भेजा कि मैं अब तेरा मुंह भी न देखूगी। पापी वसंत जब उसे किसी तरह वशमें नहीं कर सका तब उसने किसी मंत्रके द्वारा अपने वशमें करना चाहा । इसी समय महाभीम नामका मंत्रवादी 'भयोध्यामें माया, उसने उससे बहुरूपिणी विद्या सीखी। एक दिन वह अचानक ही मुर्गेका रूप धारणकर बलभद्र के घर के पास चिल्लाने कगा। मुर्गाकी आवाजसे यह समझ कर कि सबेरा होगया है, बलभद्र अपने पशुओंको लेकर खेतकी ओर रवाना होगया और