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तीसरा भाग
.. नंदश्रीने कहा-बेटा! वे जाते समय कह गए थे कि राजगृहमें 'पाण्डुकुटि' नामका महल है, मैं वहीं रहता हूं। मैं जब समाचार दूं तब वहां जाना । तबसे अभीतक उनका कोई पत्र नहीं भाया । मालूम पडता है राज्यके कामोंसे उन्हें स्मरण न रहा। माता द्वारा पिताका पता पाकर अभयकुमार अकेले ही राजगृहको चल दिये और कुछ दिनोंमें वह नन्दिग्राम पहुंचे।
(५) जब श्रेणिकको उनके पिता उपश्रेणिकने देश बाहर जानेकी माज्ञा दी थी और श्रेणिक राजगृहसे निकल गए थे, तब उन्हें सबसे पहले रास्ते में यही नंदिग्राम पड़ा था। यहांके लोगोंने राजद्रोहके मयसे श्रेणिकको गांवमें नहीं आने दिया था। इससे श्रेणिक उन लोगोंपर बहुत नाराज हुये थे। इस समय उन्हें उनकी इस अनुदारताकी सजा देने के लिये श्रेणिकने उनके पास एक हुकमनामा भेजा कि भापके गांवमें एक मीठे पानीका कुभा है, उसे बहुत जल्दी मेरे पास भेजो, मन्यथा इस आज्ञाका पालन न होनेसे. तुम्हें सजा दी जायगी। बेचारे गांवके ब्रह्मण इस माज्ञासे बहुत घबराये, सबके चेहरोंपर उदासी छागई। यह चर्चा हरएकके घर हो रही थी। इसी समय अभयकुमार वहां भाए, उन्होंने गांवके सब लोगोंको इकट्ठा कर कहा-माप लोग चिंता न कीजिए मैं जैसा कहं. वैसा कीजिए, भापका राजा उससे खुश होगा। तब उन्होंने अभयकुमारकी सलाहसे राजा श्रेणिकको लिखा कि हमने कूऐंसे भापके यहां चननेकी बहुत प्रार्थना की परन्तु वह रूठ गया है। इसलिए माप अपने शहरकी उदुंबर नामकी कुईको लेने भेज दीजिए उसके