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प्राचीन जैन इतिहास । ५६ पीछे पीछे कुमा चला भायगा। श्रेणिक पत्र पढ़कर चुप होगए, उनसे उसका उत्तर न रन पड़ा।
(६) कुछ समय बाद श्रेणिकने उनके पास हाथी भेजा और लिखा कि 'इसको तोलकर ठीक बजन लिख भेजो'। वे फिर अभयकुमारके पास आए, उसके कहे अनुसार उनलोगोंने नावमें एक मोर तो हाथीको चढ़ा दिया और दूसरी ओर खूब पत्थर रखना शुरू किया, जब देखा कि दोनों ओरका वजन समतोल होगया तब उन्होंने उन पत्थरोंको अलग तौलकर श्रेणिकको हाथीका वजन लिख भेजा । श्रेणिकको अब भी चुप रह जाना पड़ा।
(७) तीसरीवार श्रेणिकने लिख भेजा कि " मापका कुभां गांवके पूर्वमें है, उसे पश्चिमकी ओर कर देना, मैं बहुत जल्दी उसे देखने माऊँगा।" इसके लिए अभयकुमारने उन्हें समझा. कर गांवको पूर्वकी ओर बसा दिया जिससे कुआं पश्चिममें होगया।
(८) चौथीवार श्रेणिकने एक मेंढ़ा भेजा और लिखा कि " यह मेढ़ा न दुर्बल हो, न मोटा हो और न इसके खाने पीने में भसावधानी की जाय ।" इसके लिये अभयकुमारने उन्हें यह युक्ति बतलाई कि मेंढको खूब खिलापिलाकर घण्टे दो घण्टे के लिए सिंहके साम्हने बांध दो इससे न वह बढ़ेगा और न घटेगा। इस तरह मेंढ़ा ज्योंका त्यों रहा।
(९) छठीवार श्रेणिकने उन्हें लिख भेजा कि 'मुझे वालू रेतकी रस्सी चाहिये सो तुम जल्दी बनाकर भेजो' । अभयकुमारने इसके उत्तरमें लिखवा भेजा कि 'महाराज ! जैसी रस्सी तैयार कर